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३७४. पत्र : डॉ० अब्दुल हमीद गुलको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च २, १९११

प्रिय डॉ० गुल,

आपको आज जो काम सौंपा जा रहा है, वह केवल नुस्खे लिखना या अन्य लोगोंके शारीरिक घावोंकी परीक्षा करना नहीं है । श्री रिच मंगलवारको पहुँच रहे हैं। मुझे आशा है आप उनके हार्दिक स्वागतके आयोजनमें कुछ उठा नहीं रखेंगे। परन्तु यह तो कुछ नहीं है, मैं आपसे बहुत अधिककी आशा रखता हूँ । मुझे आशा है कि इस पत्रके पहुँचने तक आप नये प्रवासी विधेयकका अध्ययन कर चुके होंगे । जहाँ एक ओर इसके द्वारा ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंकी माँगें पूरी होनेकी सम्भावना है वहाँ दूसरी ओर यह केप और नेटालके भारतीयोंको बहुत-सी बातोंसे वंचित कर देता है । मेरा खयाल है कि यदि उचित ढंगसे लगातार आन्दोलन चलाया जाये तो हमें कुछ सफलता तो मिल ही सकती है। शैक्षणिक जाँच अकारण बहुत कड़ी है । जहाँतक नेटाल और केपका सम्बन्ध है, सरकार वर्तमान स्थितिको बदलने का कोई ठीक कारण नहीं बता सकती। फिर, इससे अधिवासी एशियाइयोंके अधिकार बहुत ही अरक्षित हो जायेंगे, और वैध एशियाई निवासियोंकी पत्नियों और छोटे बच्चोंके दर्जे के बारेमें विधेयकका अभिप्राय क्या है, सो भी समझमें नहीं आता । ये सब बातें ऐसी हैं कि जिनमें राहत दी जा सकती है और सुधार हो सकते हैं । आप कृपया श्री रिचको अपना सक्रिय सहयोग दें और जो कुछ भी सम्भव और आवश्यक हो सो करें। और क्या हाल है ?

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२२१ ) की फोटो - नकलसे ।

३७५. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

जोहानिसबर्ग
मार्च २, १९११

प्रिय श्री पोलक,

संलग्न सामग्री से आप समझ जायेंगे कि विधेयककी मेरी व्याख्या क्या है । इस विधेयकपर मैं जितना ही विचार करता हूँ, मेरी यह धारणा उतनी ही दृढ़ होती जाती है कि ट्रान्सवालके संघर्षका अन्त हो जायेगा । विधेयकके प्रथम खण्डका मैंने जो अर्थ

१. केप ब्रिटिश भारतीय संघके अवैतनिक संयुक्त मन्त्रियोंमें से एक । २. देखिए “पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको ", पृष्ठ ४४४-४६ । १०-२९