पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अर्पित किया उस समय इस तरहके भारतीय कितने थे ? मेरी तो पक्की धारणा है कि प्रोफेसर गोखले जो-कुछ करते हैं वह शुद्ध भावसे और भारतका हित समझकर करते हैं। उनमें भारतके प्रति इतनी भक्ति है कि यदि भारतके लिए प्राण भी देने पड़े तो वे दे डालें। वे जो-कुछ कहते हैं वह किसीकी खुशामद करनेके लिए नहीं; वरन् सच मानकर कहते हैं। इसलिए उनके प्रति हमारे मनमें पूज्यभाव होना चाहिए ।

पाठक :
 

तो क्या वे जो कुछ कहते हैं हमें भी वैसा ही करना चाहिए ।

सम्पादक:
 

मैं ऐसा कुछ नहीं कहता। यदि हम शुद्ध बुद्धिसे भिन्न विचार रखते

हैं तो प्रोफेसर साहब खुद ही हमें उस विचारके अनुसार चलनेकी सलाह देंगे। हमारा मुख्य काम तो यह है कि हम उनके कामकी निन्दा न करें, यह मानें कि वे हमसे बड़े हैं; यह विश्वास करें कि उनके मुकाबलेमें हमने भारतके लिए कुछ भी नहीं किया; उनके सम्बन्ध में कुछ समाचारपत्र वाहियात बातें लिखा करते हैं, हम इसकी निन्दा करें; और प्रोफेसर गोखले जैसोंको स्वराज्यके स्तम्भ मानें । ऐसा मान लेना कि उनके विचार गलत और हमारे सही ही हैं और जो हमारे विचारोंके अनुसार न चले वह देशका दुश्मन है, खराब वृत्ति है।

पाठक:
 

आप जो कहते हैं वह अब कुछ-कुछ समझमें आ रहा है। फिर भी मुझे

इस विषयमें विचार करना होगा । परन्तु श्री ह्यूम, सर विलियम वेडरबर्न आदिके बारेमें आपके कथनने तो गजब ढा दिया।

सम्पादक :
 

जो नियम भारतीयोंके विषयमें लागू होता है वही अंग्रेजोंके विषयमें

भी होता है। अंग्रेज-मात्र खराब हैं, यह तो मैं नहीं मानूँगा। बहुत से अंग्रेज चाहते हैं कि भारतको स्वराज्य मिल जाये । यह ठीक है कि उन लोगोंमें स्वार्थ जरा ज्यादा है। परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि हरएक अंग्रेज खराब है। जो हक - न्याय, चाहते हैं उन्हें सबके प्रति न्याय करना होगा। सर विलियम भारतका बुरा चाहनेवाले नहीं हैं, इतना हमारे लिए बस है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे आप समझेंगे कि यदि हमने न्याय-वृत्तिर्से काम लिया तो भारतका छुटकारा जल्दी होगा । आप यह भी देखेंगे कि यदि हम अंग्रेज-मात्रसे द्वष करेंगे तो स्वराज्य दूर हटेगा; परन्तु यदि उनके प्रति भी न्याय करेंगे तो स्वराज्यमें उनकी सहायता प्राप्त होगी ।

पाठक :
 

अभी तो यह सब मुझे व्यर्थका प्रलाप लगता है। अंग्रेजोंकी मदद और

स्वराज्य -ये तो परस्पर विरोधी बातें हैं। स्वराज्यका अंग्रेजों [ की मदद ] से क्या सम्बन्ध ? फिर भी इस प्रश्नका हल अभी मुझे नहीं चाहिए। उसमें समय खोना बेकार है। जब आप यह बतायेंगे कि स्वराज्य कैसे मिलेगा तब आपके विचार समझमें आयें तो आयें । अभी तो आपने अंग्रेजोंकी बात करके मुझे शंकामें डाल दिया है और मुझे आपके विचारोंके प्रति सन्देह हो गया है। इसलिए यह बात अब आगे न बढ़ायें तो अच्छा हो ।

सम्पादक:
 

मैं अंग्रेजोंकी बात देरतक नहीं करना चाहता। आप संशय में पड़

गय हैं, इसकी चिन्ता नहीं। अखरनेवाली बातको पहले ही कह देना ठीक होता है। अब आपके संशयको धैर्यके साथ दूर करना मेरा कर्तव्य है।


Gandhi Heritage Portal