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हिंदी स्वराज्य

पाठक: आपका यह वाक्य मुझे पसन्द आया । इससे मुझमें जो ठीक जान पड़े सो कहनेका साहस आ गया । अभी मेरी एक शंका रह गई है। कांग्रेसके आरम्भसे स्वराज्यकी नींव पड़ी- सो कैसे ?

सम्पादक : सुनिए । कांग्रेसने भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें भारतीयोंको एकत्र करके उनमें एक राष्ट्र बननेकी भावना भरी । कांग्रेसपर सरकारकी कड़ी दृष्टि रहती थी। उसने हमेशा यह माँगकी है कि राजस्व सम्बन्धी अधिकार जनताको होना चाहिए। उसने हमेशा वैसे स्वराज्यकी इच्छा की है, जैसा कैनेडामें है। वह मिले या न मिले, वैसा चाहिए या नहीं चाहिए, उससे अच्छा कोई दूसरा प्रकार है या नहीं, यह प्रश्न भिन्न है। मुझे बताना तो इतना ही है कि भारतको स्वराज्यका रस कांग्रेसने चखाया है। यदि कोई अन्य उसका श्रेय लेना चाहे तो वह ठीक न होगा; और हम भी अगर वैसा मानें तो कृतघ्न ठहरेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि ऐसा करनेसे हमारा जो हेतु हैं उसे पूरा करनेमें कठिनाइयाँ पैदा हो जाती हैं। कांग्रेसको विलग और स्वराज्य-विरोधी माननेसे हम उसका उपयोग नहीं कर सकते ।

•अध्याय २ : बंग-भंग

पाठक: आप जो कहते हैं उसके अनुसार विचार करनेपर यह कहना ठीक मालूम होता है कि स्वराज्यकी नींव कांग्रेसने डाली है। फिर भी यह तो आपको स्वीकार करना चाहिए कि उसे सच्ची जागृति नहीं कह सकते। सच्ची जागृति कब और कैसे हुई ?

सम्पादक : बीज कभी दिखलाई नहीं पड़ता। वह अपना काम मिट्टीके नीचे करता है और जब उसका अस्तित्व मिट जाता है अंकुर तभी जमीनके ऊपर दिखाई देता है। ऐसा ही कांग्रेसके बारेमें समझना चाहिए। जिसे आप सच्ची जागृति मानते हैं वह तो बंग-भंगसे हुई। उसके लिए हमें लॉर्ड कर्जनका आभार मानना पड़ेगा। बंग- भंगके समय बंगालियोंने कर्ज़न साहबसे बहुत अनुनय-विनय की, परन्तु उक्त महाशयने अपनी सत्ताके मदमें इसकी कोई परवाह नहीं की। उन्होंने मान लिया कि भारतीय बकवास-भर करेंगे, उनसे होना-हवाना कुछ नहीं है। उन्होंने अपमानभरी भाषाका उपयोग किया और जोर-जबरदस्तीसे बंगालका विभाजन कर डाला । ऐसा माना जा सकता है कि उस दिनसे अंग्रेजी राज्यके भी टुकड़े हो गये। जैसा धक्का अंग्रेजी राज्यको बंगालके विभाजनसे पहुँचा है, वैसा दूसरी किसी बातसे नहीं पहुँचा। इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरे अन्याय विभाजनसे कुछ कम हैं। नमक-कर कुछ छोटा अन्याय नहीं है। आगे ऐसे अनेक अन्यायोंकी बात आयेगी । परन्तु बंग-भंगको स्वीकार करनेके लिए जनता

१. राजस्वपर नियन्त्रणका अधिकार ।

२. अंग्रेजी पाठमें: "उसे इस श्रेयसे वंचित करना ठीक न होगा ।"

३. सन् १९०५ में ।

४. भारतके वाइसरॉय, १८९९-१९०५; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ५०-५१ ।


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