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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आशा है कि आन्दोलन चलानेके लिए केपके भारतीय धनकी व्यवस्था कर देंगे। उन्हें यह आशा कदापि नहीं रखनी चाहिए कि केप प्रायद्वीपमें दशा सुधारनेके लिए सत्याग्रह- कोषका उपयोग किया जायेगा, और न हम केवल उनके वादोंपर निर्भर रह सकते हैं। यदि वे यह नहीं चाहते कि आप श्रीनरकी राय लें तो मुझे लगता है कि हमें खेदपूर्वक उसे छोड़ देना चाहिए। किन्तु यदि वे चाहते हों तो उन्हें इसके लिए कुछ पैसा देना होगा ।

आपका हृदयसे,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२३१) की फोटो - नकलसे ।

३८७. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

जोहानिसबर्ग
मार्च ४, १९११

प्रिय श्री पोलक,

रिचके नाम मेरे पत्रकी प्रतिलिपिसे आपको अधिकांशतः वह जानकारी मिल जायेगी जो मैं आपको भी देना चाहता हूँ। कल मैंने 'इंडियन ओपिनियन' के लिए बहुत सारी सामग्रीका एक पुलिन्दा सीधे वेस्टको भेजा है; क्योंकि मैंने सोचा कि आप सोमवारको डर्बनमें होंगे। मैंने उसे आपके पास इसलिए नहीं भेजा कि उसका नये विधेयक सम्बन्धी आन्दोलनसे कोई वास्ता नहीं है और मैं नहीं चाहता, आपको आन्दोलनपर एकाग्र मनसे सोचने में बाधा पड़े। मैं आपको समाचारपत्रोंकी कुछ और सम्बन्धित कतरनें भेज रहा हूँ । 'प्रिटोरिया न्यूज़ " की कतरन संक्षिप्त कर ली जानी चाहिए, और 'डेली मेल" की भी । खर्चके बारेमें मैंने रिचको जो कुछ लिखा है, वही बात आप जो काम कर रहे हैं, उसमें होनेवाले खर्चपर भी लागू होती है । इस खास मामले में बिल्कुल स्पष्ट रहना चाहिए। यदि वे लोग कुछ खर्च न करना चाहें तब भी जहाँतक वे हमारी सलाह मानेंगे, हम लड़ाई जारी रखेंगे। परन्तु उस कामके लिए सत्याग्रह-कोषके पैसोंका उपयोग करना असम्भव है ।

हृदयसे आपका,

[ पुनश्च : ]

जब मैं इतना लिख चुका तब मुझे ग्रेगरोवस्कीकी सम्मति मिली। जैसा कि आप देखेंगे, यह विधेयकके सर्वथा विरुद्ध है । उनकी सम्मतिके कुछ मुद्दोंसे मैं सहमत नहीं

१. देखिए पिछला शीर्षक । २. देखिए " पत्र : ए० एच० वेस्टको", पृष्ठ ४५३ । ३ और ४. इन्हें ११-३-१९११ के इंडियन ओपिनियनमें उद्धृत किया गया था । ५. देखिए "पत्र : ई०एफ० सी० लेनको ", पृष्ठ ४५७-५८ और “पत्रः जे० जे० ढोकको ", पृष्ठ ४६७-६८ । ग्रेगरोवस्कीकी रायका पूरा पाठ उपलब्ध नहीं है ।