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पत्र : हरिलाल गांधीको

हूँ । परन्तु हमें इस सम्मतिको इस प्रकार ग्रहण करना चाहिए, मानो यह सभी बातों में सही हो; क्योंकि यह मामला इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसे किसी भी दृष्टिसे अनिश्चित नहीं छोड़ा जा सकता ।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२२८) की फोटो - नकलसे ।

३८८. पत्र : हरिलाल गांधीको

फाल्गुन सुदी ५ [ मार्च ५, १९११]

चि० हरिलाल,

जब तुम्हारी चिट्ठी मिलनेकी कोई आशा नहीं थी, वह मिली । तुम्हारी चिट्ठी आती है, तभी हम सबको आश्चर्य होता है । साधारणतया तुम्हारी चिट्ठी न आनेकी ही उम्मीद रहती है ।

बा के बारेमें तुमने जो लिखा है, वह ठीक नहीं है। बा ने जाना तय किया होता तो मेरी शर्तसे किस लिए डरती। और मेरी शर्त निरर्थक थी । बा अगर वापस आना चाहती तो चाहे जिससे पैसा लेकर आ सकती थी । सच तो यह है कि बा को अपने मनकी खबर नहीं थी । फिर भी तुम बा की वकालत करते रहते हो, इसमें मुझे आपत्ति नहीं है ।

तुम्हारा अंकगणित और भाषाका ज्ञान कम है, इसमें मुझे शर्मकी कोई बात नहीं दिखाई देती। मैंने यदि तुम्हें इन्हें [ अच्छी तरह ] सीखने का अवसर दिया होता, तो तुम सीख लेते। बच्चे जो व्यवहारनीति जानते हैं सो शिक्षाका प्रताप नहीं है, भारतकी अनुपम जीवन-पद्धतिका प्रभाव है । लोगोंपर आधुनिक शिक्षाके हमले होते रहते हैं, उनमें दुराचार दिखाई देता है और स्वार्थबुद्धि बढ़ती जाती है; फिर भी तुम जो सत्प्रवृत्ति, मितव्ययिता आदि देखते हो, उससे हमारे पूर्वजोंका पुण्य प्रकट होता है । मैं इतना तुम्हें धीरज देनेके लिए और इस इरादेसे लिखता हूँ कि तुम अधिक गहराई से विचार करो । ऊपर-ऊपरसे देखकर कार्य-कारणका मेल बैठा लेना ठीक नहीं है ।

यदि उसमें स्पष्ट रूपसे अनीति न हो तो मैं तुम्हारी पढ़ाई या अन्य किसी मनोरथके बीच में नहीं आऊँगा । इसलिए तुम निश्चित होकर, तुम्हें जबतक रुचे, पढ़ते रहो । भले ही मुझे तुम्हारे कुछ विचार नापसन्द हैं, किन्तु तुम्हारे आचरणके बारेमें मुझे शंका नहीं है; इसलिए मैं बेफिक्र रहता हूँ ।

२. पत्रके अन्तिम वाक्यसे मालूम होता है कि यह प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक के दूसरे वाचन (१३-३-१९११) से पहले लिखा गया था । इस तारीख से पहले पड़नेवाली फाल्गुन सुदी ५ को मार्च की भी ५ तारीख थी ।