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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह पत्र लिखते समय श्री सोराबजी मेरे सामने बैठे हैं। शेलत भी फार्मपर आये हैं । अभीतक विधेयकका दूसरा वाचन नहीं हुआ ।

बापूके आशीर्वाद

नवजीवन ट्रस्टके सौजन्यसे प्राप्त मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ६६३) की फोटो- नकलसे ।

३८९. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च ६, १९११

प्रिय श्री पोलक,

आपके दो पत्र मिले। मुझे खुशी है कि आपने हमारे डर्बनके मित्रोंको अच्छी तरह फटकार दिया। मैं जानता था कि आप ऐसा करेंगे। कमसे कम आपकी इस फटकारका वे आदर करते हैं ।

मेरी रायमें किसी भी संदिग्ध व्यक्तिको प्रवासी अधिकारी द्वारा कहीं भी रोका-टोका जा सकता है, संघ राज्यकी सीमा तक में । यदि ऐसी दशा है तो ट्रान्सवालसे नेटालमें प्रवेश करनेपर किसी शिक्षित भारतीयको क्यों नहीं टोका जा सकता ? यदि आप कहते हैं कि उसे टोका नहीं जा सकता तब तो ऐसे भारतीयको ट्रान्सवालकी ओरसे नेटालकी सीमामें प्रवेश करनेसे भी नहीं रोका जा सकता और उस दशामें विधेयककी धारा ७ के बावजूद प्रान्तीय प्रतिबन्ध व्यर्थ हो जायेगा। इस समय ऐसा कोई कानून विद्यमान नहीं है जो नेटालमें ऐसे व्यक्तियोंका प्रवेश रोकता हो । जोज़ेफके नेटालकी ओरसे प्रवेश करनेके बारेमें आपका कहना ठीक जान पड़ता है । यह विश्वास करना कठिन लगता है कि पत्नियों और नाबालिग बच्चोंकी बात जान बूझकर छोड़ दी गई है, और यदि वैसा है तो हमारे लिए इस विधेयककी धज्जियाँ उड़ा देना सम्भव होना चाहिए। मैं सोचता हूँ कि हमें नेटाल और केपकी तरह शैक्षणिक कसौटीका तीव्र विरोध करना चाहिए; और इस सम्बन्धमें हमें अन्तर प्रान्तीय आवा- गमनका प्रश्न उठाना चाहिए । यदि स्मट्स सार्वजनिक रूपसे आश्वासन दे दें कि अन्तर शैक्षणिक कसौटी प्रान्तीय आवागमनके लिए होगी तो यह मानते हुए कि सीमाके अन्दर रोकटोक की जा सकती है, हम आपत्ति वापस ले लेंगे अन्यथा आग्रहपूर्वक आपत्ति उठाते रहना चाहिए। अधिवासके बारेमें आंगलिया जो प्रश्न उठा रहे हैं, वह बुरा नहीं है । मैं समझता हूँ कि किसी आदमीके लिए कानूनमें गुंजाइश नहीं है दोहरे अधिवासका दावा करनेकी । अबतक ट्रान्सवालके निवासियोंने अधिवासके जो प्रमाणपत्र पेश किये हैं,

१. जोज़ेफ रायप्पन; देखिए, खण्ड ८, पृष्ठ २६७ ।