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पत्र : मॉड पोलकको

वे ठीक माने गये हैं । इसलिए मुझे इस मामलेमें सदा ही एक कानूनी कठिनाईकी आशंका रही है । और पूरी सम्भावना है कि जो लोग ट्रान्सवालमें पंजीकृत हुए हैं उनके बारेमें भविष्य में ऐसा माना जाये कि वे नेटालमें अधिवासका अधिकार खो चुके हैं। नेटाल-अधिवासका प्रमाणपत्र उपस्थित किया जाना अधिकसे-अधिक इस बातका प्रमाण है कि सम्बन्धित व्यक्तिका नेटाल छोड़नेके दिन तक वहाँ अधिवास था । किन्तु यह इस बात का सबूत नहीं है कि नेटालमें पुनः प्रवेश करते समय अधिवासका अधिकार ज्योंका-त्यों कायम है। मेरा सुझाव है कि ट्रान्सवालके उन भारतीयोंको, जो पंजीकृत हैं परन्तु जो नेटालमें अपना अधिवास कायम रखना चाहते हैं और जिनके पास तत्सम्बन्धी प्रमाणपत्र भी हैं, फिलहाल नेटालमें ही बने रहना चाहिए। यदि वे नेटालमें न हों तो उन्हें ट्रान्सवालमें रुक रहनेके बजाय नेटाल वापस चला जाना चाहिए, क्योंकि ट्रान्सवालमें अधिवासका प्रश्न उठाया नहीं जा सकता, और जो आदमी नया विधेयक लागू होने के समय नेटालमें हो उसपर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता । केपके भारतीयोंके बारेमें भी ये ही बातें लागू होती हैं ।

विधेयकपर मैं कल एक अग्रलेख भेजनेकी आशा रखता हूँ ।" यह फीनिक्स भेजा जायेगा और एक प्रति डर्बनमें आपके पास । अधिक जानकारीके लिए रिचके नाम लिखा गया मेरा संलग्न पत्र देखिए ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी प्रति (एस० एन० ५२३५) की फोटो- नकलसे ।

३९०. पत्र : मॉड पोलकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च ६, १९११

प्रिय मॉड,

संलग्न कागजात अपनी कहानी आप कहेंगे । विधेयकका पूरा पाठ 'इंडियन ओपि- नियम' में मिल जायेगा।' मैं जानता हूँ कि तुम्हें जो विधेयकका अध्ययन करना पड़ रहा है, वह कोई सुखकर काम नहीं है। किन्तु मेरा सुझाव है कि जबतक मैं तार देकर कुछ सूचित न करूँ तबतक तुम इस विधेयकके बारेमें कुछ भी न लिखो । विधेयकका निश्चित अर्थ मेरे निकट स्पष्ट नहीं है और लगता है, ऐसा कोई भी नहीं है जिसे शंका न हो । स्वाभाविक है कि जबतक अर्थ निश्चित नहीं होता, तबतक हमारी सभी धारणाएँ विधेयकके विरोधमें ही हों। वहाँ जब आन्दोलन अवश्यम्भावी

१. नहीं भेजा गया, देखिए " पत्र : एच० एस० एल० पोलकको ", पृष्ठ ४९३-९४ । २. देखिए " पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको ", पृष्ठ ४६५-६६ । ३. इंडियन ओपिनियनके ४-३-१९११ वाले अंक ।