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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो जायेगा तब सरकारको उसका कोई-न-कोई निश्चित अर्थ सामने रखना ही पड़ेगा। और तभी मैं तुम्हारे पास उसपर अपनी आपत्तियाँ निश्चित रूपमें भेजूंगा । तबतक तुम पूछ-ताछ करनेवालोंको केवल साधारण जानकारी-भर देती रह सकती हो। मैंने अभीतक तुम्हें जानबूझकर तारसे कोई खबर नहीं दी, क्योंकि हम इस समय वहाँ कोई आन्दोलन नहीं चाहते । भारतसे अनेक लोगोंने चिन्ता प्रकट करते हुए तार द्वारा पूछताछ की है । किन्तु मैंने इतना ही उत्तर दिया कि इसपर बादमें तार दूंगा । अभी तो इतना ही कहना चाहिए कि सत्याग्रहियोंको किसी भी विधेयकसे तबतक सन्तोष नहीं होगा जबतक दो माँगें बिना किसी शर्तके स्वीकार नहीं की जातीं एक तो यह कि १९०७ का कानून २ रद किया जाये, और दूसरी, यह कि शैक्षणिक कसौटीपर खरे उतरनेवाले भारतीयोंको पंजीयनके कानूनोंसे मुक्त रखकर प्रवेश करने दिया जाये। यह विधेयक १९०७ के एशियाई [ कानून ] २ को जितने स्पष्ट रूपसे रद करता है यदि वह दूसरी बातको भी उतने ही स्पष्ट रूपमें मान ले, तो फिर चाहे अन्य बातोंमें वह कितना ही बुरा क्यों न हो, हम अपने हथियार रख देंगे । इसका यह अर्थ नहीं कि हम यहाँ या वहाँकी सरकारको अपनी अन्य कठिनाइयोंके बारेमें परेशान करना बन्द कर देंगे, परन्तु हम उनके कारण सत्याग्रह शुरू नहीं करेंगे । फिलहाल हमारी कोशिश भी यही है कि हम अपना आन्दोलन हल्के ढंगसे चलाते रहें। याचिकाएँ भेजनेके आन्दोलनको हम वैधानिक आन्दोलन कहते हैं, सो इसलिए नहीं कि इस तरह सत्याग्रहसे उसका कोई अन्तर सूचित होता हो; सत्याग्रह भी उतना ही वैधानिक है जितना कि केवल याचिकाएँ भेजना। यह कैसा शुभ संयोग है कि श्री रिच ऐन मौकेपर यहाँ हैं । मैं समझता हूँ कि वे स्वयं इस बात से सहमत होंगे कि इस समय उनका यहाँ रहना, वहाँ रहनेकी अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यक है । तुम निःसंकोच अपनी यह सम्मति प्रकट कर सकती हो कि केप और नेटालके लिए तो यह विधेयक हृदसे ज्यादा बुरा है । वहाँ भारतीयोंके लिए सैद्धान्तिक समानताका प्रश्न उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि वह तो वहाँ प्राप्त ही है। इसलिए इस विधेयकके अन्तर्गत व्यावहारिक अधिकारोंका छीन लिया जाना एक बहुत ही गम्भीर और वास्तविक शिकायतकी बात है; उसका निराकरण आवश्यक है, और जैसा कि तुमने देखा होगा, केप और नेटालमें हलचल शुरू हो गई है। मैं यही उम्मीद करता हूँ कि यह हलचल कमसे-कम इतनी तो होगी ही कि उसका सरकारपर असर पड़ सके। श्री रिच और श्री पोलक उक्त दोनों स्थानोंमें हैं। यह देखकर मैं बिलकुल बेफिक्र हूँ । श्री रिच- वाला मानपत्र' मिलनेपर मैं तुम्हारे सुझावके मुताबिक बलूतकी लकड़ीका एक फेम खरीद लूंगा, और मूल्यकी पर्ची तुम्हारे पास भेज दूंगा, तथा मढ़ा हुआ मानपत्र उनको भेंट कर दूंगा। इस बार मैं समितिके लिए १५ पौंडके बजाय १८ पौंड भेज रहा हूँ ।

१. देखिए “पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको ", पृष्ठ ४५९ । श्री गोपालकृष्ण गोखलेको भेजा गया तार उसमें उद्धृत किया गया है। २. दक्षिण आफ्रिका के लिए रवाना होनेसे पहले श्री रिचको यह मानपत्र लन्दनके भारतीय और अंग्रेज समर्थकोंने भेंट किया था। इसे १८-३-१९११ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था ।