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पत्र : मगनलाल गांधीक

आप कृपया श्री उमरको स्मरण दिला दें कि मुझे चर्च स्ट्रीटवाली जायदादका पट्टा चाहिए। प्रिटोरियासे कर्ज प्राप्त करनेके लिए मैंने कैलेनबैकके पट्टेका उपयोग किया है । उस समय उसकी बड़ी जल्दी थी। श्री दादा उस्मान तारपर-तार भेज रहे थे और मैं यह जानने तक के लिए नहीं रुका कि श्री उमरके पासका मूल पट्टा कहाँ है। अब कैलेनबैकका पट्टा बन्धधरों (बाँड-होल्डर्स) के पास है । इसलिए हमें चाहिए कि हम अपना मूल पट्टा उनके बन्धधरोंको दे दें । अतः कृपया मालूम कीजिए कि वह किसके पास है, श्री उमर या किसी औरके । नॉरविच यूनियन कम्पनी, जिसके पास इस पट्टेका बन्धक है, के वकीलोंसे मेरी बात हुई थी। मैं शनिवारको भी शहरमें रहूँगा, हालाँकि मैं सवा बजेकी गाड़ीसे रवाना होनेकी कोशिश करूँगा किन्तु, यह तो इस बातपर निर्भर करेगा कि आप और रिच मुझे क्या लिखते हैं ।

आपके पत्र फीनिक्सके पतेपर भेज दिये गये हैं । व्यूनस आयर्ससे आया हुआ पत्र' मैं साथ बन्द कर रहा हूँ । इस पत्र लेखकको मैं बिलकुल नहीं जानता । सम्पूर्ण पत्र प्रकाशित करनेकी हमारी इच्छा नहीं है । और जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, आप यदि इसे बिलकुल ही न छापें तो मुझे कोई एतराज नहीं है । परन्तु यदि आप सोचें कि इसमें कुछ तत्व है तो आप इससे उद्धरण दे सकते हैं । भारतीय अर्जेन्टाइनमें जाकर बसें, इस विचारने मुझे तनिक भी आकर्षित नहीं किया है ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२६४) की फोटो - नकलसे ।

४१०. पत्र : मगनलाल गांधीको

फाल्गुन सुदी ९ [ मार्च ९, १९११]

चि० मगनलाल,

तुम तमिलकी ओर जो ध्यान दे रहे हो, उससे मुझे लगता है कि किसी दिन तुम उसे अच्छी तरह सीख लोगे ।

'सरस्वती' का एक अंक और थोरोका जीवन-चरित्र आज भेज रहा हूँ। पहले अंकमें प्रकाशित रामदासजीका' जीवन-वृत्तान्त मैंने पढ़ लिया है। बहुत अच्छी तरह लिखा गया है। क्या तुम्हें पक्का भरोसा है कि इसके बादका अंक तुमने मुझे भेजा है ? वहाँ देखना । हो तो भेजना। मेरे पास तो दिखाई नहीं देता । पुरुषोत्तमदाससे पूछना कि क्या उसने देखा है ? थोरोका जीवन पढ़ने योग्य है । अवकाशमें पढ़ जाना। वह पुस्तकालय में दिया जायेगा; इसलिए श्री वेस्ट भी देख लेंगे। फिर भी, उनका ध्यान इस तरफ खींचना ।

१. इस पत्रको इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित नहीं किया गया । २. यह पत्र छगनलालके जुलाई १९११ में दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेसे पहले ही लिखा गया होगा । ३. समर्थ स्वामी रामदास ।