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हिन्द स्वराज्य

{{||अध्याय ३ : अशान्ति और असन्तोष }}

पाठक : तो, बंग-भंग आपकी समझमें जागृतिका कारण है। उससे फैली अशान्ति उचित मानी जाये या अनुचित ।

सम्पादक : मनुष्यकी आँख खुलती है तो वह अंगड़ाई लेता है, करवटें बदलता है और अशान्त होता है। पूरी तरह जाग्रत होने में कुछ समय लगता है। इसी तरह बंग-भंगसे नींद टूटी तो है, फिर भी तंद्रा पूरी नहीं गई। अभी हम अंगड़ाईकी हालतमें हैं। स्थिति अभी अशान्तिकी है। जैसे नींद और जागृतिके बीचकी अवस्था जरूरी मानी जानी चाहिए और इसलिए उसे ठीक कहा जायेगा, उसी तरह बंगाल में और उसके कारण सारे भारतमें फैली हुई अशान्ति भी ठीक मानी जायेगी । अशान्ति है, यह हम जानते हैं, इसलिए शान्तिका समय आना सम्भव है। नींदसे उठनेपर हम सदा ही अंगड़ाइयोंकी स्थितिमें नहीं बने रहते, आगे-पीछे अपनी शक्तिके अनुसार पूरे जाग जाते हैं। वैसे ही इस अशान्तिसे हम जरूर बाहर निकलेंगे। अशान्ति किसीको रुचिकर नहीं लगती।

पाठक : अशान्तिका दूसरा पहलू क्या है ?

सम्पादक: अशान्ति असलमें असन्तोष है। उसे आजकल हम 'अनरेस्ट' कहते हैं । कांग्रेसके जमानेमें उसे 'डिसकंटेंट' कहा जाता था । श्री ह्यूम हमेशा कहा करते थे कि भारतमें 'डिसकंटेंट' फैलानेकी जरूरत है। यह असन्तोष बहुत उपयोगी वस्तु है। जब- तक मनुष्य अपनी वर्तमान स्थितिसे सन्तुष्ट रहता है तबतक उसे उससे निकल आनेकी वात समझाना कठिन होता है। इसलिए हरएक सुधारके पहले असन्तोष होना ही चाहिए। प्राप्त परिस्थितिसे अरुचि होनेपर ही उसे उठा फेंकनेकी इच्छा होती है । महान् भारतीयों तथा अंग्रेजोंकी पुस्तकें पढ़कर हममें यह असन्तोष जागा है। इस असन्तोषसे अशान्ति हुई और इस अशान्तिमें कुछ लोग मरे, कुछ घर-द्वार छोड़कर मारे-मारे फिरे, बरबाद हुए, कुछ जेल गये और कुछको देश-निकाला हुआ ।' आगे भी ऐसा ही

१. गांधीजी यहाँ 'क्रान्तिकारियों के नामसे विख्यात उन भारतीयोंकी बात कर रहे हैं जो स्वराज्यकी प्राप्तिके लिए हिंसामें विश्वास रखते थे और जिन्होंने उन दिनों कुछ अंग्रेजों और देशभक्तों के खिलाफ सरकारका साथ देनेवाले कुछ भारतीयों की हत्या कर दी थी । सन् १९०८ में अठारह वर्षीय खुदीराम बोसने मुजफ्फरपुरके जिला मजिस्ट्रेट किंगफोर्डको मारनेके इरादेसे बम फेंका था जिसमें श्रीमती और कुमारी केनेडी नामक दो अंग्रेज महिलाएँ भर गई थीं । खुदीराम बोसको गिरफ्तार करनेवाले सब-इन्सपेक्टर नन्दलालकी हत्या कर दी गई थी, इसी प्रकार अलीपुर षड्यन्त्र केसमें सरकारी गवाह बन जानेवाले नरेन्द्र गोसाँईकी भी हत्या कर दी गई थी। अलीपुर षड्यन्त्र केसमें, इस केसके प्रमुख अभियुक्त श्री अरविन्द घोष, जिनकी पैरवी चित्तरंजन दासने की थी, निर्दोष छूट गये थे किन्तु अन्य कई व्यक्तियोंको आजीवन निर्वासन आदिकी भारी-भारी सजाएँ हुई थीं । सन् १९०९ में गणेश सावरकरको राजद्रोहात्मक कविताएँ लिखनेपर आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, इसी साल कलकत्ते में आशुतोष लाहिड़ी नामक सरकारी वकीलकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी । गांधीजी के लन्दन पहुँचनेके कुछ ही दिन पहले, पहली जुलाईको मदनलाल धींगराने लन्दनमें सर कर्ज़न वाइलीको गोली मार दिया था। निर्वासनके उदाहरणोंमें सन् १९०७ में लाला लाजपतराय और सरदार अजीतसिंहका और बाल गंगाधर तिलकका निर्वासनउल्लेखनीय है, तिलक १९०८ से १९१४ तक मांडलेके जेलमें रहते थे।



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