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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगा - होना चाहिए । ये सभी चिह्न अच्छे कहे जा सकते हैं। परन्तु इनका नतीजा सम्पूर्ण गांधी वाङहोगा - होना चाहिए । ये सभी चिह्न अच्छे कहे जा सकते हैं। परन्तु इनका नतीजा बुरा भी निकल सकता है ।

अध्याय ४ : स्वराज्य क्या है ?

पाठक : मैं समझ गया कि कांग्रेसने भारतको एक राष्ट्र बनानेके लिए क्या क्या किया, बंग-भंगसे जागृति कैसे हुई और अशान्ति तथा असन्तोष कैसे फैला । अब मैं स्वराज्यके विषयमें आपके विचार जानना चाहता हूँ। मुझे डर है कि कहीं इसमें हमारे विचार अलग-अलग न हों।

सम्पादक : सम्भव है। स्वराज्यके लिए आप और हम सब अधीर हैं। परन्तु स्वराज्य है क्या, इस बारेमें हम ठीक निष्कर्षपर नहीं पहुँच पाये हैं। बहुत-से लोग यह कहते सुने जाते हैं कि अंग्रेजोंको निकाल बाहर किया जाये; परन्तु ऐसा क्यों करना चाहिए, इसपर सचमुच कोई ठीक विचार किया गया हो, ऐसा नहीं लगता। आपसे ही मैं पूछता हूँ, मान लीजिए हम जितना माँगते हैं अंग्रेज उतना सब दे दें, तो क्या आप फिर भी अंग्रेजोंको निकाल बाहर करनेकी जरूरत समझेंगे ?

पाठक: मैं तो उनसे एक ही चीज मांगता हूँ -- मेहरबानी करके आप हमारे देशसे चले जाइये । यह माँग वे स्वीकार करें और भारतसे चले जायें और बादमें कोई अर्थका अनर्थ करके यह सिद्ध कर दे कि वे जानेपर भी यहीं रह गये हैं तो मुझे कोई आपत्ति न होगी। तब मैं मानूंगा कि हमारी भाषामें किसीके लेखे 'गये' शब्दका अर्थ 'रहे' है।

सम्पादक : अच्छा, मान लें कि माँगके अनुसार अंग्रेज चले गये। बादमें आप क्या करेंगे ?

पाठक : इस प्रश्नका उत्तर अभी कैसे दिया जा सकता है ? बादकी बात वे जिस तरीकेसे जायेंगे उसपर निर्भर रहेगी। अगर, जैसा कि आप कहते हैं, हम यह मान लें कि वे चले गये, तो मुझे लगता है कि हम उनका बनाया हुआ विधान कायम रखेंगे और राज्यका कारबार चलायेंगे। वे यों ही चले गये तो हमारे पास सेना आदि तैयार ही रहेगी; और हमें राजकाज चलानेमें अड़चन नहीं होगी । सम्पादक: आप भले ही ऐसा मानें, मैं तो नहीं मानता। परन्तु इस विषयपर मैं अभी ज्यादा चर्चा करना नहीं चाहता। मुझे तो आपके प्रश्नका उत्तर देना है। वह आपसे ही कुछ प्रश्न पूछकर भलीभाँति दिया जा सकेगा। इसलिए कुछ प्रश्न पूछता हूँ। आप अंग्रेजोंको किसलिए निकालना चाहते हैं? पाठक : क्योंकि उनके शासनसे देश कंगाल होता जाता है । वे हर वर्ष देशसे धन ले जाते हैं। वे अपनी ही चमड़ीके लोगोंको बड़े-बड़े ओहदे देते हैं। हमें सिर्फ गुलाम बनाकर रखते हैं, हमारे साथ कठोर बरताव करते हैं और हमारी कोई परवाह नहीं करते ।

सम्पादक: यदि वे धन बाहर न ले जायें, नम्र हो जायें और हमें बड़े-बड़े ओहदे देने लगें, तो क्या आपको उनके रहनेपर कोई आपत्ति है ?


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