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पत्र : मोंड पोलकको

हो जायेंगे। तब भी संसदमें तृतीय वाचनके तुरन्त बाद ही यह विधेयक कानून न बन जाये, इस उद्देश्यसे मैंने वह तार भेजा था ताकि तुम लॉर्ड ऍम्टहिल और सर मंचरजीसे सलाह ले सको और कमसे कम साम्राज्य सरकारको सावधान कर सको। वैसे ही तार' बम्बई और मद्रास भी भेजे गये हैं ।

मेरा खयाल है, विधेयकों-सम्बन्धी प्रक्रियाका तुम्हें ज्ञान है । एक वार औपचारिक रूपसे इसका वाचन किया जाता है। द्वितीय वाचनके अवसरपर पूर्ण रूपसे वादविवाद होता है । और जबतक विधेयकके सिद्धान्तपर ही विरोध न हो, द्वितीय वाचन भी सम्पन्न हो जाता है। तब समितिमें इसका वाचन होता है और उसी समय संशो- धन आदि किये जाते हैं। इसके बाद [ विधानसभायें ] तृतीय वाचन होता है । तृतीय वाचनके बाद विधेयक सीनेटमें जाता है । और यदि सीनेट इसका अनुमोदन कर देता है तो यह गवर्नर-जनरलके पास शाही स्वीकृतिके लिए प्रस्तुत किया जाता है । यदि विधेयकमें कोई आरक्षक धारा न हो तो वह तत्काल देशका कानून बन जाता है । आरक्षक धारा उस दशामें जोड़ी जाती है जब कोई रंगभेद किया गया हो । चूंकि इस विधेयकमें कोई भेदभाव नहीं किया गया है, इसलिए इसमें कोई आरक्षक धारा नहीं है । अतः, यदि साम्राज्य सरकारने गर्वनर-जनरलको यह सलाह न दी कि विधेयकपर मंजूरी देनेके पहले वे विधेयकको साम्राज्य सरकारको दिखा लें तो विधेयक तत्काल लागू हो जायेगा। और अगर विधेयकपर अमल शुरू हो जाये तो आपत्तिकर्ताओंके सामने अन्तिम उपाय बचता है निषेधाधिकारका प्रयोग करना; क्योंकि शाही हिदायतों में एक धारा इस आशयकी है कि किसी विधेयकके कानूनके रूपमें लागू हो जानेपर भी उसके लागू होने की तिथिसे दो वर्षके भीतर उसपर सपरिषद- सम्राट् (किंग-इन- कौंसिल) द्वारा निषेधाधिकारका प्रयोग किया जा सकता है ।

जान पड़ता है, जबतक यह पत्र तुम्हारे पास पहुँचेगा, विधेयक विधानसभा से तो पास होकर निकल चुकेगा लेकिन तबतक वह शायद सीनेटमें नहीं पहुँच पायेगा, या कमसे कम गवर्नर-जनरलकी स्वीकृति तो उसपर नहीं ही मिल सकेगी। विधेयककी प्रगतिके बारेमें तुम्हें आगे और भी तार भेजूंगा। मैं निम्नलिखित स्थिति तुम्हारे सामने बिलकुल स्पष्ट कर देनेको उत्सुक हूँ । सत्याग्रह इसलिए जारी रखा गया है कि १९०७ का कानून ३ रद कर दिया जाये और प्रवासके मामलेमें उच्च शिक्षा प्राप्त एशियाइयोंको कानूनी समानता मिले। परन्तु तुम्हें जो तार भेजा है उसमें बताया गया है कि यदि विधेयक वैध निवासियोंकी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंकी रक्षा नहीं करता तो शायद सत्याग्रह खत्म न होगा । ऐसा कहा जा सकता है कि हम लोगोंने यह नया मुद्दा उठाया है । परन्तु मुझे आशा है कि यदि ऐसी कोई मिथ्या धारणा हो तो तुम दूर कर सकोगी। वर्तमान कानूनके अन्तर्गत पत्नियाँ और नाबालिग बच्चे पूर्णतया संरक्षित हैं । यह तुम्हें ग्रेगरोवस्कीकी सम्मति से मालूम हो जायेगा । परन्तु नया विधेयक हमें उस अधिकारसे वंचित रखना चाहता है । सत्याग्रहियोंसे यह

१ देखिए “तार : नटेसन, गोखले और द० आ० क्रि० भा० समितिको ", ५४ ४८९-९० । २. इस सम्मतिका एक अंश मात्र उपलब्ध है; देखिए " पत्र : ई०एफ० सी० लेनको”, पृष्ठ ४५७-५८