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हिन्द स्वराज्य

पाठक : यह प्रश्न ही निरर्थक है। बाघ अपना वेष बदल ले तो उसके साथ दोस्ती करनेमें क्या हानि है ? - ऐसा पूछना केवल समय बरबाद करना है । बाघ अपना स्वभाव बदले तो अंग्रेज अपनी आदत छोड़ें । जिसका होना सम्भव नहीं है वही हो जायेगा, लोगोंमें ऐसा माननेका चलन नहीं है ।

सम्पादक : कैनेडाको जो राज्यसत्ता मिली है, बोअर लोगोंको जो राज्यसत्ता मिली है, वैसी ही हमें भी मिल जाये तो ?

पाठक : यह प्रश्न भी निरर्थक है। यह तो तभी हो सकता है जब हमारे पास उनकी तरह गोला-बारूद हो । परन्तु जब हमें उन लोगों जितनी सत्ता मिलेगी तब तो हम अपना ही झंडा रखेंगे। जैसा जापान वैसा भारत । हमारा अपना जहाजी बेड़ा, अपनी सेना, अपनी समृद्धि । और तभी भारतका सारे संसारमें बोलबाला होगा।

सम्पादक: यह तो आपने अच्छी तसवीर खींची। इसका अर्थ तो यह हुआ कि हमें अंग्रेजी राज्य चाहिए, परन्तु अंग्रेज नहीं चाहिए। आप बाघका स्वभाव चाहते हैं, परन्तु बाघको नहीं चाहते। अर्थात्, आप भारतीयोंको अंग्रेज बनाना चाहते हैं । किन्तु जब भारतीय अंग्रेज़ बन जायेगा तब देश भारत नहीं कहलायेगा, बल्कि दरअसल इंग्लिस्तान कहलायेगा। यह स्वराज्य मेरे विचारका स्वराज्य नहीं है ।

पाठक: मैंने तो वैसे स्वराज्यकी बात की जैसा मेरी समझमें आता है। हम जो शिक्षा पाते हैं यदि वह किसी कामकी हो; स्पेन्सर, मिल आदि महान लेखकोंकी जो कृतियाँ हम पढ़ते हैं वे किसी कामकी हों; अंग्रेजोंकी पार्लियामेंट पार्लियामेंटोंकी माता हो, तब तो बेशक मुझे लगता है कि हमें उन लोगोंकी नकल करनी चाहिए और वह भी यहाँ तक कि जैसे वे अपने देशमें दूसरोंको नहीं घुसने देते वैसे ही हम भी न घुसने दें। और फिर, उन्होंने उनके अपने देशकी जैसी कुछ उन्नति की है, वैसी और जगहोंमें अभीतक तो देखनेमें नहीं आती। इसलिए हमें उनका ढंग अपनाना ही चाहिए । परन्तु अभी तो आप अपने विचार बतलाइए।

सम्पादक: सो तनिक देर से । मेरे विचार इस चर्चामें अपने आप मालूम हो जायेंगे । स्वराज्यको समझन आपको जितना सरल मालूम होता है, मुझे उतना ही कठिन । इसलिए अभी तो मैं इतना ही समझानेका प्रयत्न करूँगा कि जिसे आप स्वराज्य कहते हैं वह सचमुचमें स्वराज्य नहीं है।

अध्याय ५ : इंग्लैंडकी दशा

पाठक : तो, आपके कहनेका मैं यह मतलब निकालता हूँ कि इंग्लैंडमें जो राज्यपद्धति है वह ठीक नहीं है और वह हमारे उपयुक्त नहीं होगी ।

सम्पादक : आपका अनुमान ठीक है। इंग्लैंडकी आजकी स्थिति सचमुच दयनीय है। और मैं तो ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वैसी स्थिति भारतकी कभी न हो । जिसे आप पार्लियामेंटोंकी माता कहते हैं, वह पार्लियामेंट तो वन्ध्या है और वेश्या है। ये दोनों शब्द कड़े हैं, फिर भी ठीक लागू होते हैं। मैंने वन्ध्या कहा, क्योंकि अबतक पार्लियामेंटने अपने-आप एक भी अच्छा काम नहीं किया। उसकी स्वाभाविक स्थिति


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