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४३३. पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

मार्च १६, १९११

प्रिय रिच,

आपका पत्र मिला, और तार भी । आपने निश्चय ही जो कुछ सम्भव था, किया। यदि आपके चले जानेके बाद भी विभिन्न भारतीय संघोंका वर्तमान एकी- करण' जारी रहता है तो यह बहुत बड़े लाभकी बात होगी। यदि वह युवक डॉक्टर, गुल त्यागकी भावनासे अच्छी तरह काम करे, तो बहुत कुछ कर सकता है। मैं आपके नाम आये सात पत्रोंको आपके वर्तमान पतेसे भेज रहा हूँ। मॉडने कोई नई खबर नहीं दी है। मुझे आशा है कि आप [ प्रवर ] समितिमें पेश होनेवाले प्रत्येक संशोधनको सावधानी के साथ देखेंगे और यह ध्यान रखेंगे कि जनरल स्मट्स इस आशयका संशोधन पेश करके कि जो लोग शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत प्रवेश करेंगे ट्रान्सवालके पंजीयन कानूनके अधीन नहीं होंगे, कहीं छलसे रंगभेद न पैदा कर दें। संशोधन यह होना चाहिए कि ऐसे व्यक्तियोंपर किसी भी प्रान्तके पंजीयन कानून लागू नहीं होंगे; क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो ऑरेंज फ्री स्टेटमें प्रवेश निषिद्ध हो जायेगा और प्रवास - सम्बन्धी समानताका सिद्धान्त खण्डित हो जायेगा । ट्रान्सवालके किसी प्रवासी कानूनमें ट्रान्सवालके पंजीयन कानूनसे मुक्ति ही यथेष्ट होती; परन्तु संघके प्रवासी कानूनमें तो समस्त पंजीयन कानूनोंसे मुक्ति मिलना नितान्त आवश्यक है। कृपया यह भी समझ लीजिए कि जो एशियाई पंजीकृत हैं या पंजीयनके हकदार हैं या प्रवासकी कसौटीके अन्तर्गत प्रवेश करते हैं, उनके नाबालिग बच्चोंकी रक्षा होनी ही चाहिए, फिर चाहे वे संघके बाहर हों या भीतर । जनरल स्मट्स निःसन्देह इस आशयका संशो- धन पेश कर सकते हैं कि केवल वे ही एशियाई नाबालिग ट्रान्सवालमें प्रवेश कर सकेंगे जो ट्रान्सवालके बाहर परन्तु संघके भीतर हैं । 'इंडिया' ने आपके प्रतिवेदनका पूरा विवरण छापा है ।" पढ़ने में यह बहुत अच्छा लगता है । जान पड़ता है कि लॉर्ड ऍम्टहिलने अपना फर्ज अच्छी तरह अदा किया है और यह देखकर मुझे हर्ष हुआ कि दुबे इतनी अच्छी तरह बोले । स्पष्ट है कि सारा मामला बहुत ही सफल रहा । मैं उन सबके नाम जानना चाहूँगा, जो उपस्थित थे | मॉडने मेरे पास ये नाम नहीं भेजे । लगता है 'साउथ आफ्रिकन न्यूज़' के लेखकसे कोई आशा नहीं की जा सकती । उसके रवैये को देखते हुए यही कहना पड़ेगा कि उसके प्रति शिष्टाचार बरतना बेकार है । परन्तु आपके पत्रने उसे विचार करनेपर बाध्य किया ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति ( एस० एन० ५२९९) की फोटो - नकलसे ।

१. देखिए पाद-टिप्पणी ३, पृष्ठ ४६६ । २. फरवरी २४, १९११ वाले अंकमें 1 ३. एक भारतीय जो इंग्लैंडमें वकालत करते थे ।