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पत्र : जे० जे० ढोकको

वैसे मैं हर रोज शामको तो आश्रम लौट ही आया करूँगा । आज इस बातसे बड़ी खुशी हुई कि टेलीफोनपर आपकी आवाज पहलेसे काफी बुलन्द और बेहतर हो गई है। आशा है, अब जुकाम बिलकुल अच्छा हो गया होगा । 'प्रिटोरिया न्यूज़' के नाम अपने पत्रकी प्रतिलिपि संलग्न कर रहा हूँ। यह पत्र इसलिए लिखा है कि मैंने लिखनेका वादा किया था । परन्तु भेंट-वार्ताको पुनः पढ़नेपर मुझे लगता है कि इसके लिखनेकी जरूरत नहीं थी । स्टेंटने नेटाल और केपके बारेमें मेरे विचारको यथेष्ट रूपसे स्पष्ट कर दिया है। आँकड़ों और मेरे सन्तोष से सम्बन्धित अन्तिम अनुच्छेदमें जो भूल रह गई है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । बहरहाल मुझे आशा है कि आप मेरे पत्रको पर्याप्त समझेंगे ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३०२) की फोटो - नकलसे ।

४३५. पत्र : जे० जे० डोकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च १७, १९११

प्रिय डोक,

मुझे लगता है कि एक छोटी-सी बातके कारण- -यूरोपीयोंके लिए वह छोटी ही • संघर्षको लम्बा करना पड़ेगा। श्री रिचने इस आशयका तार भेजा है कि जनरल स्मट्स एक संशोधन पेश करेंगे जो भावी प्रवासियोंको ट्रान्सवालके एशियाई कानूनसे बरी रखेगा। कहनेका तात्पर्य यह है कि वे तब भी ऑरेंज फ्री स्टेटके एशियाई अध्या- देशके अधीन तो रहेंगे ही और इसलिए प्रवासी कानूनमें रंगभेद फिर भी बना रहेगा । मुझे लगता है कि हमारे लिए ऐसी कोई रियायत स्वीकार करना सम्भव नहीं होगा। जहाँतक नवप्रवासियों का सम्बन्ध है सम्पूर्ण संघसे रंगभेदको हटा देनेसे भी ऑरेंज फ्री स्टेटकी हद तक कोई फर्क नहीं पड़ता; क्योंकि स्थानीय निर्योग्यताएँ तब भी बनी रह सकती हैं और रहेंगी । [ संघीय प्रवासी कानूनमें ] जबतक छूटवाली धारा नहीं शामिल की जाती तबतक कोई भी शिक्षित भारतीय प्रवासी फ्री स्टेटमें पैर ही नहीं रख सकेगा। व्यवहारमें फ्री स्टेटमें किसी शिक्षित भारतीयके बसनेकी गुंजाइश ही नहीं है; क्योंकि वहाँ ऐसे भारतीय बहुत कम हैं, जिन्हें उसकी सेवाओंकी आव- श्यकता हो । इस विषयपर जो पत्र-व्यवहार' हुआ है, उसकी प्रतियाँ मैं आपके पास भेज रहा हूँ। मैं यह जाननेके लिए उत्सुक हूँ कि इस सारे मसलेपर आपकी प्रति- क्रिया क्या है ? मुझे लगता है कि यदि ट्रान्सवालके प्रवासी कानूनमें रंगभेद स्वीकार १. देखिए “पत्र : प्रिटोरिया न्यूजको ", पृष्ठ ४९७-९८ । २. गांधीजी और स्मट्सके बीच हुआ पत्र-व्यवहार ।