पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

ऐसी है कि यदि कोई उसपर जोर डालनेवाला न हो तो वह कुछ भी न करे । और वह वेश्या है, क्योंकि जो मन्त्रिमण्डल उसे रखता है वह उसके पास रहती है। आज उसका धनी एस्क्विथ' है, तो कल बॉलफर, और परसों कोई तीसरा ।

पाठक: यह तो आप कुछ व्यंग्य-सा कर रहे हैं। वन्ध्या शब्द कैसे लागू है, यह आपने अभीतक समझाया नहीं। पार्लियामेंट लोगोंकी बनी है, इसलिए वह लोगोंके दबावसे ही तो काम करेगी । यही उसका गुण है कि उसके ऊपर अंकुश है ।

सम्पादक : इस बातमें भारी भूल है। यदि पार्लियामेंट वन्ध्या नहीं हैं; चूंकि लोग उसमें अच्छेसे अच्छे सदस्य चुनकर भेजते हैं; सदस्य वेतनके बिना जाते हैं, इसलिए अर्थात् वे लोक-कल्याणके लिए जाते हैं; मतदाता भी शिक्षित माने जाते हैं, अर्थात् वे [ चुनाव में ] भूल नहीं करते; तो फिर ऐसी पार्लियामेंटको प्रार्थनापत्रोंकी या दबावकी जरूरत क्यों पड़ती है ? उस पार्लियामेंटका काम इतना सरल होना चाहिए कि दिन-ब-दिन उसका तेज अधिक दिखलाई पड़े और लोगोंपर उसका असर बढ़ता जाये । इतना तो सब स्वीकार करते हैं कि पार्लियामेंटके सदस्य ऐसे न होकर आडम्बरी और स्वार्थी पाये जाते हैं। सब अपना स्वार्थ साधते हैं। सिर्फ डरके कारण ही पार्लियामेंट कुछ काम करती है । आजका किया हुआ कल रद करना पड़ता है। आजतक पार्लियामेंटने एक भी बात ठिकाने लगाई हो, ऐसा उदाहरण देखनेमें नहीं आता। जब उसमें बड़े-बड़े प्रश्नोंकी चर्चा चलती है तब उसके सदस्य पैर फैलाये ऊँघते बैठे रहते हैं। पार्लियामेंटमें सदस्य इतना चीखते-चिल्लाते हैं कि सुननेवाला हैरान हो जाता है। वहाँके एक महान् लेखक उसे दुनियाका 'बकवास-घर' कहा है । सदस्य जिस पक्षके होते हैं उस पक्षमें वे अपना मत बिना सोचे-विचारे देते हैं, देनेके लिए बाध्य होते हैं। उनमें कोई अपवाद निकल आये तो उसकी शामत ही समझिए। जितना समय और धन पार्लियामेंट नष्ट करती है उतना समय और धन यदि कुछ अच्छे लोगोंको मिले तो राष्ट्रका उद्धार हो जाये । यह पार्लियामेंट तो राष्ट्रका खिलौना-मात्र है, और वह बहुत महँगा खिलौना है। ये विचार मेरे अपने हैं, ऐसा न समझिये। बड़े-बड़े विचारवान अंग्रेज भी ऐसा सोचते हैं। एक सदस्यने तो यहाँतक कहा है कि पार्लियामेंट धर्मिष्ठ व्यक्तिके योग्य नहीं रही। दूसरे सदस्यने कहा है कि पार्लियामेंट तो 'बेबी' (बच्चा) है। किसी बच्चेको कभी आपने बच्चा ही बने रहते देखा है ? आज सात सौ वर्ष बाद भी यदि पार्लियामेंट बच्चा ही बनी हुई हो तो वह बड़ी कब होगी ?

पाठक : आपने मुझे विचारमें डाल दिया। यह सब मुझे एकदम मान लेना चाहिए, ऐसा तो आप नहीं चाहेंगे । आप मेरे मनमें बिलकुल भिन्न विचार पैदा कर रहे हैं। उनको मुझे पचाना होगा। खैर, अब आप 'वेश्या' शब्दका विवेचन कीजिए ।

२. हर्बर्ट हेनरी एरिक्वथ, (१८५२-१९२८), ग्रेट ब्रिटेनके प्रधान मन्त्री, १९०८-१६ ।

२. आर्थर जेम्स बॉलफर, ग्रेट ब्रिटेनके प्रधान मन्त्री, १९०२-०५ ।

३. सदस्योंको वेतन देना १९११ में शुरू हुआ ।

४. इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित पाठमें यह पूरा वाक्य मोटे टाइपमें दिया गया है ।

५. कार्लाइल ।



Gandhi Heritage Portal