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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनी मांगोंकी पूर्तिपर तत्काल संघर्ष बन्द कर देनेके लिए नैतिक रूपसे बँधे हुए नहीं हैं तो निःसन्देह इस विधेयकको सम्मानजनक समझौते के रूपमें स्वीकार न करना उनके लिए सर्वथा उचित होगा। परन्तु हमें आशा है कि सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक द्वारा दी गई सलाहको जनरल स्मट्स मान लेंगे और केप तथा नेटालके भारतीयोंके द्वारा की गई उचित प्रार्थनाओंको स्वीकार कर लेंगे । वे कोई नई चीज नहीं चाहते । वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि मौजूदा अधिकारोंमें फेरफार न करनेका वचन दे दिया जाये। कहा जाता है कि जनरल स्मट्स चाहते हैं कि प्रतिवर्ष केवल बारह एशियाइयोंको शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत प्रविष्ट होने दिया जाये। हमारी रायमें यह बिलकुल बेतुकी बात है । ट्रान्सवालके भारतीयोंने सुझाया था कि ट्रान्सवालमें प्रतिवर्ष ६ [ भार- तीय] आने दिये जायें। निःसन्देह केप और नेटालके लिए यह संख्या बहुत छोटी है । कानूनका सुचारु रूपसे कार्यान्वित होना बहुत-कुछ उस भावनापर निर्भर करेगा जिससे जनरल स्मट्स विनियमोंको गढ़ने की प्रेरणा लेंगे और कानून तथा विनियम जिसके अनुसार लागू किये जायेंगे । सत्याग्रहियोंके भाग्यका फैसला अगले चन्द दिनोंमें ही हो जायेगा। जनरल स्मट्सने कहा है कि इस विधेयकका मन्शा शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत प्रवेश करनेवाले भारतीयोंको पंजीयन कानूनसे मुक्त करना है। अतएव, विधे- यकमें इस अभिप्रायको स्पष्ट करनेके उद्देश्यसे जनरल स्मट्सको केवल यही करना है कि वे मामूली शाब्दिक संशोधन कर दें। हम यह विश्वास तो कर ही नहीं सकते कि वे सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयके विपरीत जाना चाहते हैं और [ इस प्रकार ] नाबालिग एशियाइयोंको उन अधिकारोंसे वंचित रखना चाहते हैं जिन्हें अदालत मंजूर कर चुकी है, अथवा वे विधिसम्मत निवासियोंकी स्त्रियोंको पूरा संरक्षण नहीं देना चाहते ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-३-१९११

४४२. नया विधेयक संसदमें

इस विधेयकके दूसरे वाचनके समय जो बहस हुई, उसे सभी भारतीयोंको पढ़ना चाहिए। उसमें बहुत-कुछ जानने योग्य मिल जायेगा। नये विधेयकमें उचित संशोधन हों या न हों; किन्तु उक्त विधेयकके सम्बन्धमें क्या कहा गया और उसमें केवल एशियाई प्रश्नपर कितना जोर दिया गया, यह देखने योग्य है । सभी देख सकते हैं कि यह सारा प्रभाव सत्याग्रहकी लड़ाईका है। लॉर्ड क्रू ने १९०९ में एक सुझाव दिया और बादमें फिर दूसरा सुझाव दिया, और जनरल बोथासे अनुरोध किया कि उन्हें भारतीयोंकी माँग स्वीकार कर लेनी चाहिए। ज्यों-ज्यों सत्याग्रह लम्बा खिंचता गया, त्यों-त्यों ब्रिटिश सरकार और उसी प्रकार स्थानीय सरकारके विचार भी बदलते चले गये । [ पहले कहा गया था कि ] १९०७ का कानून २ कभी रद नहीं किया जायेगा; लेकिन [ बादमें] उसे रद करना स्वीकार किया । [ पहले ] स्वेच्छया पंजीयन स्वीकार