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तार : एल० डब्ल्यू० रिचको

नहीं किया था। लेकिन [ बादमें ] किया । [ पहले कहा था कि ] शिक्षितोंको कभी न आने देंगे; लेकिन फिर एक अलग कानूनके मातहत आने देनेकी बात मानी । फिर कहा, अब इससे आगे तो बढ़ेंगे ही नहीं; यदि एशियाइयोंकी माँग स्वीकार करेंगे तो वह अनीति होगी; लेकिन अनीतिकी बात अब खत्म हो गई है और 'एशियाइयोंकी माँग मंजूर कर ली गई है। पूछा जा सकता है, इस मॉंगके मंजूर किये जानेसे मिला क्या ? विधेयक हमारे मनोनुकूल रीतिसे पास हो जाये तो हम इसका जवाब सोचेंगे।

महत्त्वकी बात तो इतनी ही है कि ज्यादा या कम जो कुछ माँगा था वह मिल गया है । सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक, जो कभी हमें धमकाते थे, अब यह कहते हैं कि जनरल स्मट्सको चाहिए कि वे एशियाइयोंको सन्तुष्ट करें। वे डरते हैं कि सत्याग्रह कहीं समस्त दक्षिण आफ्रिका में न फैल पाये। श्री डंकन, जिन्होंने काला कानून बनाया था अब उसे रद कर देनेकी बात करते हैं, और सोचते हैं कि इस नये कानूनके फलस्वरूप सत्याग्रह बन्द हो जाये तो अच्छा हो । एक भी सदस्यने सत्याग्रहके विरुद्ध भाषण नहीं दिया । इससे अधिक बड़ी जीत दूसरी क्या होगी ?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-३-१९११

४४३. तार : एल० डब्ल्यू० रिचको

जोहानिसबर्ग
मार्च १८, १९११

कलके तारकी पुष्टि करता यदि शिक्षित एशियाई फ्री स्टेट कानूनसे विमुक्त नहीं किये जाते तो रंगभेदके विरुद्ध हमारा संघर्ष समाप्त नहीं हो सकता । इस अत्यन्त अपमानजनक रूपमें रंगभेद बढ़ता रहा तो सत्याग्रहका क्षेत्र विस्तृत हो जायेगा । जैसा कि सर पर्सीने स्पष्ट कहा है इस मुद्दे पर समझौता नहीं हो सकता । आशा है केप और नेटालके एशियाई अब अवश्य ही हमारा साथ देनेकी जरूरत महसूस करेंगे। परन्तु वे साथ दें या नहीं, मेरी सलाह साथी सत्याग्रहियोंको यह है कि वे दृढ़तासे संघर्ष जारी रखें। इस समय उनसे सलाह कर रहा हूँ। उनके निर्णयकी सूचना आपको बादको दूँगा । केपके भारतीयोंपर धन इकट्ठा करनेके लिए जोर डालिए । उन्हें लिख सकता हूँ ? क्या मैं

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३११) की फोटो नकलसे ।

१. मूलमें ययपि मार्च १७ है, पर लगता है यह गलत है । रिचके नाम भेजे 'कल' के जिस तार (पृष्ठ ५०३) की पुष्टि करते हुए यह तार भेजा गया, वह १७-३-१९११ को भेजा गया था । अतः इस तारकी तारीख मार्च १८ होनी चाहिए।