पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४४९. तार : जनरल स्मट्सके निजी सचिवको

जोहानिसबर्ग मार्च २०, १९११ बहुत भय है कि यदि जनरल स्मट्स, आपके १६ तारीखके पत्र में जो कहा गया है, उससे आगे बढ़नेका रास्ता नहीं निकाल सकते, तो यह दुःखद संघर्ष जारी रहेगा । अध्याय तैतीसको रद करानेका कोई अनुरोध नहीं किया गया। उसका केवल वह भाग, जिसके अनुसार निवासके लिए गवर्नरको प्रार्थनापत्र भेजना जरूरी है, शिक्षित एशियाई प्रवासियोंपर लागू नहीं होना चाहिए। इसपर कोई आपत्ति नहीं कि शिक्षित एशियाई प्रवासियोंपर वे अन्य निर्योग्यताएँ लागू हों जो एशियाई निवासियोंके लिए सामान्य हैं। ट्रान्सवालके पंजीयन कानूनसे पूर्ण विमुक्ति दी जानी चाहिए। ट्रान्सवालमें शिक्षित भारतीय प्रवासियोंके अधिकार अन्य एशियाई निवासियोंके अधिकारोंसे कम नहीं होने चाहिए । ट्रान्सवाल' और नेटालके दो वकीलोंने लिखित राय दी है कि विधेयकके वर्तमान स्वरूपके अनुसार निवासी एशियाइयोंकी पत्नियों और नावा- लिग बच्चोंको, यदि इस समय वे अपने-अपने प्रान्तों में न हों, कोई संरक्षण नहीं । आशा है कि संघर्ष बन्द करनेके लिए जो छोटी राहत अपेक्षित है, मंजूर की जायेगी ।

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३२६) की फोटो - नकल और २५-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से भी ।

४५०. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

मार्च २०, १९११

प्रिय श्री लेन,

प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकको लेकर आपके और मेरे बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ, उसके बारेमें आपके १६ तारीखके पत्रके उत्तरमें मैंने आज तार' भेजा है, अब मैं अपने

१. अपने २१ ता० के तार में श्री लेन संभवत: ता० १९ का तार कहकर इसीका उल्लेख करते हैं। (पा० टि० ४ पृष्ठ ५१७); देखिए “यूरोपीय समितिकी बैठककी रिपोर्ट", पृष्ठ ५२१ भी । २. देखिए परिशिष्ट १० । ३ और ४. आर० ग्रेगरोवस्की और लॉटन; देखिए "पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको", पृष्ठ ५१५-१६ । ५. देखिए परिशिष्ट १० । ६. देखिए पिछला शीर्षक ।