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पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

तारमें सूचित बातोंको विस्तारके साथ लिखता हूँ। ऑरेंज फ्री स्टेटके संविधानके अध्याय ३३ को रद करनेकी कोई जरूरत नहीं है और न ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे इसकी माँग ही की गई है । परन्तु मैं जनरल स्मट्सके विचारार्थ सविनय यह सुझाव रखता हूँ कि वे जो संशोधन पेश करना चाहते हैं, उसके अन्तर्गत शिक्षित भारतीय प्रवासी जिस प्रकार १९०८ के ट्रान्सवाल कानून संख्या ३६ के मातहत पंजीयन करानेसे मुक्त रहेंगे, ठीक वैसे ही वे ऑरेंज फ्री स्टेट संविधानके अध्याय ३३ के खण्डोंसे उस बातमें मुक्त रहेंगे, जिनका अर्थ पंजीयन कराने जैसा होता है। आपने अपने १६ तारीखके पत्र में ४ तारीखके जिस तारका उल्लेख किया है उसे भेजते समय जान पड़ता है, जनरल स्मट्सका यही इरादा था । उसमें कहा गया है कि :

नये प्रवासी विधेयक के मातहत जो एशियाई प्रवेश पायेंगे वे पंजीयन के कानूनों के मातहत नहीं होंगे और प्रान्तीय सीमाओंसे बँधे नहीं रहेंगे ।

यही बात लॉर्ड क्रू को भेजे गये उस खरीतेमें भी कही गई है जो 'नीली पुस्तिका यू० ७/११' में प्रकाशित हुआ है। एशियाई केवल इतना ही माँग रहे हैं कि विधेयकके अधीन उन्हें कानूनी तौरपर प्रवासका पूर्ण अधिकार बिना रंगभेदके प्राप्त हो । यदि किसी शिक्षित भारतीयको ऑरेंज फ्री स्टेटमें बसनेकी अनुमतिके लिए अध्याय ३३ के अन्तर्गत अर्जी देनी पड़े तो इसका अर्थ होगा कि प्रवासी विधेयकमें रंगभेद है । यदि विधेयक में संशोधन करके उन्हें खण्ड १, २, ३, ४, ५, ६, ९, १० और ११ से छूट दे दी जाये तो हम सन्तुष्ट हो जायेंगे, हालाँकि ऐसे प्रवासियोंपर अचल सम्पत्ति न रख सकने आदि जैसी वे निर्योग्यताएँ फिर भी लागू रहेंगी जो सभी एशियाइयों पर सामान्य रूपसे लागू हैं ।

मैं कहना चाहूँगा कि आपके पत्रका अनुच्छेद २ स्पष्ट नहीं है । आप कहते हैं कि जो संशोधन पेश किया जानेवाला है, उसके फलस्वरूप शिक्षित भारतीय प्रवासी १९०८ के ट्रान्सवाल कानून संख्या ३६ के अधीन पंजीयन करानेसे वरी होंगे। इसका यह अर्थ हो सकता है कि शिक्षित भारतीय प्रवासी १९०८ के अधिनियम ३६ के प्रभावसे पूर्णतया मुक्त नहीं होगा, किन्तु उसे पंजीयन करानेकी आवश्यकता नहीं होगी । हो सकता है कि उस दशामें शिक्षित प्रवासियोंकी स्थिति निवासी- एशियाइयोंसे बदतर हो । यह स्थिति भारतीय समाजको कदापि मान्य नहीं होगी ।

तीसरे अनुच्छेदके बारेमें मैं कहना चाहूँगा कि ट्रान्सवाल और नेटालके दो बहुत पुराने और बहुत अनुभवी वकीलोंने अपना यह मत प्रकट किया है कि अभीतक एशियाई निवासियोंकी पत्नियाँ और नाबालिग बच्चे बाहरसे आकर उनके साथ रह सकते थे, किन्तु आगेसे वैसा नहीं हो सकेगा; क्योंकि यदि वे शैक्षणिक कसौटीपर खरे नहीं उतरे तो निषिद्ध प्रवासी करार दिये जायेंगे। यदि विधेयकका उद्देश्य ऐसे एशियाइ- योंकी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंपर रोक लगानेका नहीं है तो मेरा निवेदन है कि विधेयकमें छूट दी जानी चाहिए । यहाँ मैंने जो बातें कही हैं, वे यूरोपीयोंके हितकी दृष्टिसे वास्तविक महत्त्व नहीं रखतीं, और, मैं सोचता हूँ, वे किसी तरह विवादास्पद भी नहीं हैं । किन्तु, एशियाइयोंके १०-३३