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हिन्द स्वराज्य

सम्पादक  : आप मेरे विचारोंको एकदम न मान सकें, यह तो ठीक है। यदि आप इससे सम्बन्धित आवश्यक साहित्य देखें तो आपको कुछ अन्दाज़ हो जायेगा । मेरा पार्लियामेंटको वेश्या कहना भी ठीक है। उसका कोई घनी नहीं है। उसका एक धनी हो ही नहीं सकता। परन्तु मेरे कहनेका अर्थ इतना ही नहीं है। जब कोई उसका धनी बनता है। जैसे कि प्रधानमन्त्री -- तब भी उसकी चाल एक सरीखी नहीं रहती। जैसे बुरे हाल वेश्याके होते हैं वैसे पार्लियामेंटके सदैव रहते हैं प्रधानमन्त्रीको पार्लियामेंटकी चिन्ता थोड़े ही रहती है। वह तो अपनी सत्ताके नशेमें डूबा रहता है। उसे सिर्फ यह चिन्ता रहती है कि अपने पक्षकी विजय कैसे हो । पार्लियामेंट ठीक काम कैसे करे, यह विचार उसे नहीं रहता। वह अपने पक्षको बल प्रदान करनेके लिए पार्लियामेंटसे क्या-क्या काम कराता रहता है, इसके यथेष्ट उदाहरण मिलते हैं। ये सब बातें विचार करने योग्य हैं ।

पाठक : इस तरह तो आप उन लोगोंपर भी हमला कर रहे हैं, जिन्हें आज- तक हम देशाभिमानी और प्रामाणिक व्यक्ति मानते आये हैं । सम्पादक: हाँ, यह सच है । मुझे प्रधानमन्त्रियोंसे कोई द्वेष नहीं है। परन्तु अनुभव कहता है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं माने जा सकते । जिसे रिश्वत कहते हैं सो वे खुल्लमखुल्ला नहीं लेते-देते; यदि इसीलिए उन्हें प्रामाणिक माना जाये तो अलग बात है, परन्तु वसीला उनके पास पहुँच सकता है। वे दूसरोंसे काम निकालनेके लिए उपाधि आदिकी खासी रिश्वत देते हैं। मैं साहसके साथ कह सकता हूँ कि शुद्ध भाव और शुद्ध प्रामाणिकता उनमें नहीं होती ।

पाठक : जब आपके ऐसे विचार हैं तब तो आप अंग्रेज जनताके बारेमें भी कुछ कहें, जिसके नामपर पार्लियामेंट राज्य करती है, ताकि उनके स्वराज्यकी पूरी कल्पना हो जाये ।

सम्पादक : जो अंग्रेज 'वोटर' हैं (चुनाव करते हैं) अखबार उनकी धर्म-पुस्तक (बाइबल) हो गये हैं। वे उन अखबारोंपर से अपने विचार निश्चित करते हैं। पत्र अप्रामाणिक हैं- उनमें एक ही बातके दो रूप छापे जाते हैं। एक पक्षवाला एक बातको बड़ी बनाकर पेश करता है, दूसरा उसीको छोटी कर डालता है। एक अखबारवाला एक अंग्रेज नेताको प्रामाणिक मानेगा, दूसरा अप्रामाणिक । जिस देशमें ऐसे अखबार हैं उस देशके लोगोंकी हालत कैसी बुरी होगी !

पाठक : यह आप ही बताइए ।

सम्पादक: वे लोग क्षण-क्षणमें अपने विचार बदलते हैं। उन लोगोंमें कहावत प्रचलित है कि रंग हर सातवें वर्ष बदल जाता है। घड़ीके लोलककी तरह वे लोग इधरसे उधर डोला करते हैं। एक जगह स्थिर रह ही नहीं सकते। कोई व्यक्ति जरा

१. अंग्रेजी पाठ में यह वाक्य छोड़ दिया गया है। इसे जानबूझकर छोड़ा गया है । 'गणेश ऐंड कं०' द्वारा प्रकाशित हिन्द स्वराज्यकी अपनी प्रस्तावना (२८-५-१९१९) में गांधीजीने कहा था : “यदि मुझे इस पुस्तकमें संशोधन करनेका अवसर आये तो मैं एक शब्द सुधारना चाहता हूँ। एक अंग्रेज महिला भित्रको मैंने उसे बदलनेका वचन दिया है। मैंने पार्लियामेंटको 'वेश्या' कहा है। यह उसे नापसन्द है । "

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