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४५९. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

मार्च २२, १९११

प्रिय पोलक,

इस पत्रके साथमें उन प्रस्तावोंकी' प्रतियाँ भेज रहा हूँ जिन्हें, मेरा सुझाव है, आप सभामें पास कर सकते हैं। यदि दूसरा प्रस्ताव जैसाका तैसा पास हो जाये तो वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी । मैं जनरल स्मट्सके नाम अपना उत्तर' भी आपके पास भेज रहा हूँ। श्री फिलिप्स' विधेयकके बहुत खिलाफ हैं, क्योंकि उनका खयाल है कि ऑरेंज फ्री स्टेटकी निर्योग्यतामें रंगभेद निहित है, और इसका अर्थ, स्वयं उनके शब्दोंमें, “एक राष्ट्रको निषिद्ध करना है । उनके कहनेसे यूरोपीय समितिकी एक सभा कल श्री हॉस्केनके कार्यालय में बुलाई जा रही है । मेरा खयाल है कि समिति इस मामलेमें जनरल स्मट्सको सख्तीसे लिखेगी। मुझे सन्देह नहीं कि सब सदस्य हमारा समर्थन करेंगे। मैं आपके अवलोकनार्थ रिचका पत्र भेज रहा हूँ । विधेयकके बारेमें उनके तर्क प्रत्येक दृष्टिसे विचारणीय हैं। स्वयं मैं उनके साथ पूर्णतया सहमत नहीं हो पाया हूँ। हम कोई नया मुद्दा नहीं उठा रहे हैं और मुझे लगता है कि यदि हम संघर्ष समाप्त करेंगे तो यह अपनी आत्माको बेच देना होगा। मेरे बताने- पर गैर-सत्याग्रही भारतीयोंने भी इस मुद्देको समझा, और संघर्ष जारी रखनेके विरुद्ध मैंने जो तर्क पेश किये, उनका खण्डन करनेमें उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई । यद्यपि अधिकांश सत्याग्रही इस बातके लिए बहुत उत्सुक हैं कि संघर्ष समाप्त हो जाये, तथापि वे बेहिचक कहते हैं कि यदि फी स्टेटका प्रतिबन्ध बना रहता है तो संघर्ष जारी रहना चाहिए।

हृदयसे आपका,

[ संलग्नपत्र ],
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३४४) की फोटो नकलसे ।

१. देखिए " प्रस्ताव : नेटाल भारतीय कांग्रेसकी सभा ", पृष्ठ ५२९-३० । २. देखिए “तार : जनरल स्मट्सके निजी सचिवको", पृष्ठ ५१७-१८ । ३. चार्ल्स फिलिप्स, ट्रान्सवालके एक पादरी । ४. देखिए अगला शीर्षक । ५. यह उपलब्ध नहीं है । ६. यह उपलब्ध नहीं है । प्रस्तावोंके लिए देखिए “प्रस्ताव : नेटाल भारतीय कांग्रसकी सभायें ", पृष्ठ ५२९-३० ।