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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आडम्बर-पटु हो और बड़ी-बड़ी बातें कर दे अथवा दावतें आदि देता रहे तो लोग नगाड़चीके समान उसके नामके नगाड़े बजाने लगते हैं। ऐसे लोगोंकी पार्लियामेंट भी ऐसी ही होती है। उनमें यह बात जरूर है कि वे अपने देशको [ दूसरोंके हाथमें] नहीं जाने देंगे, और यदि कोई उसपर नजर डाले तो उसकी आँखें निकाल लेंगे । परन्तु इससे उस देशकी प्रजामें सब गुण आ गये या वह अनुकरणीय हो गयी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मेरा तो निश्चित विचार है कि यदि भारत अंग्रेजोंकी नकल करे तो वह बरबाद हो जायेगा ।

पाठक : अंग्रेज जनताके ऐसे हो जानेका आप क्या कारण मानते हैं ?

सम्पादक: इसमें अंग्रेजोंका विशेष दोष नहीं है; दोष उनकी - बल्कि यूरोप- की - - आधुनिक सभ्यताका है। वह सभ्यता असभ्यता है और उससे यूरोपकी जनता बरबाद होती जा रही है ।

अध्याय ६ : सभ्यता

पाठक : अब तो आपको सभ्यता बात भी समझानी पड़ेगी। आपके हिसाबसे सभ्यता असभ्यता जो ठहरी ।

सम्पादक: मेरे हिसाबसे ही नहीं, बल्कि अंग्रेज लेखकोंके हिसाबसे भी वह सभ्यता असभ्यता है। इसके विषयमें बहुत-सी पुस्तकें लिखी गई हैं। वहाँ इस सभ्यताका विरोध करनेके लिए सभा-समितियोंकी स्थापना भी हो रही है। एक व्यक्तिने' 'सभ्यता : उसके कारण और चिकित्सा' नामकी पुस्तक लिखी है। उसमें उसने यह सिद्ध किया है कि सभ्यता एक प्रकारका रोग है।

पाठक: यह सब हमें मालूम क्यों नहीं पड़ता ?

सम्पादक: इसका कारण तो साफ है। कोई भी व्यक्ति अपने विरुद्ध बात शायद ही करता है। सभ्यताके मोहमें फँसे हुए लोग उसके विरुद्ध नहीं लिखेंगे; वरन् ऐसी बातें और दलीलें खोज निकालेंगे जिनसे उसे सहारा मिले। ऐसा भी नहीं कि वे जान-बूझकर ऐसा करते हैं। वे जो कुछ लिखते हैं वही उनकी धारणा होती है। मनुष्य जो स्वप्न देखता है उसे निद्राके वशमें रहनेपर सच ही मानता है। जब उसकी नींद खुलती है तभी उसे सत्यका पता चलता है। ऐसी ही दशा सभ्यताके वशीभूत मनुष्यकी होती है। हम जो-कुछ पढ़ते हैं वह सभ्यताके हिमायतियोंका लिखा होता है। उनमें बहुत बुद्धिमान और बहुत भले लोग शामिल हैं। उनके लेखनसे हम चौंधिया जाते हैं। इस तरह एकके बाद दूसरा व्यक्ति उसमें फँसता जाता है।

पाठक: यह बात आपने ठीक कही । अब उसकी कल्पना दीजिए जो आपने पढ़ा और सोचा है ।

सम्पादक : पहले तो हम यह सोचें कि किस परिस्थितिको सभ्यता कहा जाता है। इस सभ्यतकी सच्ची पहचान तो यह है कि इसे स्वीकार करनेवाले लोग भौतिक

१. एडवर्ड कारपेंटर; देखिए हिन्द स्वराज्यका परिशिष्ट-१, पृष्ठ ६५ ।


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