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पत्र : सोंजा इलेसिनको

स्मट्स : हाँ, मैं केवल फ्री स्टेटवालोंके मनकी थाह ले रहा था, और उससे जाहिर हो गया कि वे इसके बहुत अधिक विरुद्ध हैं ।

गांधी : यदि वे विरुद्ध हैं तो आपका कर्तव्य यह है कि आप उन्हें राजी करें। और यदि वे राजी नहीं होते तो आप केवल ट्रान्सवालके विधानका संशोधन करें ।

स्मट्स : परन्तु मैं साम्राज्य सरकारके सामने इस विधेयकको पास करनेके लिए बँधा हुआ हूँ । (कानूनको पढ़ते हैं और गांधीसे अपनी ओर आनेको कहते हैं; गांधी उस धाराकी ओर संकेत करते हैं, जिससे छूट दी जानी है ।) हाँ, अब मैं आपका आशय समझ गया ।

गांधी : जी हाँ; शिक्षित एशियाइयोंको तब भी अचल सम्पत्ति रखने और व्यापार करनेकी मुमानियत रहेगी। मैं उस मुद्देको तो उठा ही नहीं रहा हूँ। हमें अभी आपसे १८८५ के कानून ३ के प्रश्नपर लड़ना है । परन्तु उसका सत्याग्रहसे कोई सरोकार नहीं है । जहाँतक मेरा प्रश्न है. मैं पार्थिव लाभके लिए सत्याग्रह नहीं करना चाहता । परन्तु हम प्रजातीय भेदको कभी स्वीकार नहीं कर सकते ।

स्मट्स : परन्तु आपको मेरी कठिनाइयोंका कुछ अन्दाज नहीं है। गांधी: मैं जानता हूँ कि आप इनसे भी बड़ी कठिनाइयोंपर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

स्मट्स: अच्छा, मैं अब फ्री स्टेटके सदस्योंसे बात करूंगा। आप अपना पता लेनके पास छोड़ दीजिए। मुझे आशा है कि आप केप और नेटालके भारतीयोंको शान्त रखेंगे ।

गांधी : वे निश्चय ही शान्त नहीं रहेंगे। मुझे नेटालसे अभी तार मिला है । वर्तमान अधिकारोंकी रक्षा करना नितान्त आवश्यक है। अधिवासका प्रश्न पेचीदा है और खण्ड २५ में संशोधनकी आवश्यकता है। प्रमाणपत्र तो माँगने- भरसे मिल जाने चाहिए ।

स्मट्स : परन्तु विवेकाधिकार तो सदैव रहेगा । गांधी : वर्तमान कानूनोंमें नहीं । परन्तु इस बारेमें यदि आप चाहें तो मैं बादमें बात करूँगा ।

स्मट्स : जोहानिसबर्ग आदिमें आप क्या करते हैं ?

गांधी: सत्याग्रहियों आदिके परिवारोंकी देखभाल ।

स्मट्स : इन लोगोंको गिरफ्तार करनेमें मुझे आपसे भी अधिक दुःख हुआ। जो अपने विवेककी खातिर कष्ट उठाते हैं उन लोगोंको गिरफ्तार करना मेरे जीवनकी सबसे अप्रिय घटना है । मैं खुद भी विवेककी खातिर यही करूंगा ।

गांधी : और फिर भी श्रीमती सोढापर जुल्म किया जा रहा है ।