पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो ट्रान्सवालके भारतीय समाजके प्रवक्ता हैं और इन दिनों केप टाउनमें हैं, 'आर्गस' के प्रतिनिधिके साथ हुई अपनी बातचीतमें विधेयकके उन मुद्दों की विस्तारपूर्वक चर्चा की जिनको ट्रान्सवालके भारतीय मंजूर नहीं कर रहे हैं। [उन्होंने कहा:]

अगर विधेयकके अन्तर्गत शैक्षणिक कसौटीको पार करके संघ-राज्यमें आनेवाले शिक्षित भारतीयोंको फ्री स्टेटमें बसनेका अधिकार प्राप्त नहीं होता तो, जहाँतक सत्याग्रहियोंका सम्बन्ध है, विधेयकका मुख्य दोष उसके प्रजातीय भेदपर आधारित होने में है। आपको याद होगा कि २० दिसम्बरको जनरल बोयाने लॉर्ड क्रू को भेजे गये अपने खरीतेमें लिखा है कि ऐसे एशियाई संघ- राज्यके किसी भी प्रान्तमें बस सकेंगे। जनरल स्मट्सने भी विधेयकके दूसरे वाचनके समय इसी आशयके शब्द कहे थे। परन्तु अब ऐसा दिखाई देता है कि इस वचनको ताकपर रखकर इन एशियाइयोंको फ्री स्टेटमें प्रवेश न देनेका विचार किया जा रहा है।

यहींपर मैं यह भी बता दूँ कि इस सवालका महत्त्व अभी तो केवल सैद्धान्तिक है; क्योंकि आजकी परिस्थितियोंमें कोई भी भारतीय फ्री स्टेटमें जानेकी बात नहीं सोचेगा। परन्तु एशियाइयोंकी भावनाओंको शान्त करनेके लिए प्रजातिगत रुकावटको हटाना नितान्त आवश्यक है।

हम यह नहीं कहते कि एशियाइयोंपर जो अन्य सामान्य बन्दिशें लगी हुई हैं वे हटा दी जायें अर्थात् अगर एक शिक्षित भारतीय फ्री स्टेटमें जाता है तो उसपर अचल सम्पत्ति रखने और व्यापार-व्यवसाय न करनेसे सम्बन्धित निर्योग्यताकी बन्दिश तो रहेगी ही। शिक्षित भारतीयोंको प्रवेश देनेपर जो आपत्ति की जा रही है उसका मूल कारण केवल वहाँकी परिस्थितिका अज्ञान ही है। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि अगर प्रजातिगत रुकावटको हटा देनेसे एशियाइयोंके मनको संतोष हो सकता है तो फ्री स्टेटके सदस्य इसका विरोध क्यों करेंगे। मेरी समझमें शायद ही कोई शिक्षित ब्रिटिश भारतीय फ्री स्टेटमें जानेकी कोशिश करेगा; क्योंकि वहाँ भारतीय इतनी कम संख्यामें हैं और सो भी इस तरह दूर-दूर बिखरे पड़े हैं कि वहाँ किसी भारतीय डॉक्टर या बैरिस्टरका निर्वाह हो ही नहीं सकता। जबतक प्रजाति-सम्बन्धी यह रुकावट नहीं हटाई जाती, मुझे भय है कि अनाक्रामक प्रतिरोध बन्द नहीं किया जा सकेगा और यदि कहीं केप और नेटालके ब्रिटिश भारतीय इसमें शरीक हो जायें तो इसका क्षेत्र भी बढ़ सकता है।

नेटाल और केप

विधेयकके अन्य मुद्दोंके बारेमें मेरे पास नेटालसे तार आ रहे हैं। इनके बारेमें केप टाउनके अपने देश भाइयोंसे मैं सलाह-मशविरा कर रहा हूँ। उन सबकी राय यही है कि वर्तमान अधिकारोंकी पूरी तरह रक्षा होनी चाहिए। इसलिए वे कहते हैं कि जो लोग दक्षिण आफ्रिकामें बस गये हैं, उनकी पत्नियों और बच्चोंको पूरा संरक्षण मिलना चाहिए, और अधिवासके अधिकारोंको पूरी-पूरी मान्यता मिलनी चाहिए जैसी कि अभी तक दी गई है।