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परिशिष्ट

लगता है, फिर भी आप वहाँ जो कार्य कर रहे हैं वह हमारे लिए सर्वाधिक आधारभूत और महत्त्वपूर्ण है । क्योंकि इसके द्वारा एक ऐसी ठोस और व्यावहारिक वस्तु मिलती है जिससे संसार अब लाभ उठा सकता है और इसमें ईसाइयोंको ही नहीं संसारके सभी लोगोंको अवश्य हाथ बटाना ही चाहिए ।

मैं समझता हूँ कि आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि यहाँ रूसमें भी इसी तरहका एक आन्दोलन तेजी से बढ़ता रहा है। उसका रूप यह है कि लोग प्रति वर्ष निरन्तर बढ़ती ही जानेवाली सैनिक सेवाओं में भाग लेनेसे इनकार कर रहे हैं। अप्रतिकारके आन्दोलन में भाग लेनेवाले आपके सहयोगियों और रूसकी सैनिक सेवाओं में भाग लेनेसे इनकार करनेवालोंकी संख्या कितनी ही कम क्यों न हो, वे बड़ी दिलेरीके साथ घोषित कर सकते हैं कि 'ईश्वर हमारे साथ है' और 'ईश्वर मनुष्यसे अधिक शक्तिशाली है । '

यद्यपि हमारे ईसाई-संसार में ईसाई धर्मके घोषित आदर्श विकृत रूपमें मिलते हैं, फिर भी उन घोषित आदर्शोंके इस विकृत स्वरूप और दिन-दिन अधिकाधिक बड़े पैमानेपर हत्याकी तैयारी करने और उसके लिए सेना रखने की अनिवार्यता स्वीकार करनेके बीच इतना उग्र और भयंकर विरोध है कि वह देर सवेर, कदाचित बहुत ही शीघ्र, बिलकुल नग्न रूपमें हमारे सामने प्रकट हुए बिना नहीं रह सकता । उस दशार्मे हम या तो ईसाई धर्मको तिलांजलि देकर राजसत्ताको बनाये रखें और किसी न किसी रूपमें आवश्यक और राज्य द्वारा समर्थित सेना तथा अन्य सभी प्रकारकी हिंसाका परित्याग कर देंगे। सभी सरकारें इस अन्तर्विरोधको महसूस कर रही हैं। आपकी ब्रिटिश सरकार और हमारी रूस-सरकार भी उसे महसूस करती है । और इसीलिए, अपनी प्रवृत्तिके अनुसार प्रचलित व्यवस्थाको ज्योंकी-त्यों बनाये रखनेके उद्देश्य से इन सरकारोंके द्वारा विरोधी पक्ष सताया जा रहा है । हम रूसमें देखते हैं और आपकी पत्रिकाके लेखोंसे भी हमें विदित होता है कि सरकारें अन्य प्रकारकी शासन विरोधी कार्रवाइयोंको उतना महत्त्व नहीं देतीं । सरकारोंको मालूम है कि असली खतरा किस दिशासे है और वे बड़े जोशके साथ उससे बचने की कोशिश कर रही हैं; ताकि वे केवल अपने स्वार्थीकी ही रक्षा न कर सकें बल्कि अपने अस्तित्वकी रक्षाके लिए संघर्ष भी कर सकें।

सादर आपका
लिओ टॉल्स्टॉय

[ अंग्रेजीसे ]

डा० कालिदास नाग द्वारा रचित 'टॉल्स्टॉय और गांधी' से ।

परिशिष्ट ७

ट्रान्सवालके मन्त्रियोंकी घोषणाएँ

श्री छोटाभाई और श्री तैयव हाजी खान मुहम्मदके लड़कों के मुकदमोंकी अहमियतके विचारसे अक्तूबर, १९०८ की नीली पुस्तक [ ब्ल्यू बुक ] में से जिसमें 'ट्रान्सवालमें एशियाइयोंसे सम्बन्धित कानूनोंसे सम्बन्धित पत्र-व्यवहार' दिया गया है, हम कुछ अंश उद्धृत कर रहे हैं :

एशियाई पंजीयन संशोधन विधेयकके द्वितीय वाचन के समय, उपनिवेश सचिवके अगस्त, १९०८ में दिये गये भाषणका अंश :

“ १९०७ के अधिनियम २ से उन्होंने तीसरी जो कठिनाई महसूस की उसका सम्बन्ध बच्चोंसे था । उस अधिनियम में एक ऐसी व्यवस्था की गई थी जिसके अन्तर्गत बालिग पुरुष ही नहीं बल्कि ८ से १६