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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साल तक की उम्र वाले नाबालिगों के लिए भी पंजीयन कराना आवश्यक था सच पूछो तो इसके लिए अर्थात् उस उनके नाबालिगोंक भी पंजीयनकी व्यवस्था रखनेके लिए कोई खास कारण नहीं था। स्वेच्छया पंजीयन के दौरान मैंने तो एक दूसरा ही तरीका अपनाया था जो उतना ही कारगर सिद्ध हुआ था। तरीका यह था : माता-पिताके पंजीयनके सिलसिले में उनसे प्रमाणपत्रों में ही उनके १६ सालकी उम्र तक के सारे बच्चोंके नाम, उनकी उम्र और उनका विवरण भर दिया जाता था, ताकि आगे चलकर यदि कोई पिता या माता यह कहे कि उसके पाँच बच्चे हैं तो सम्बन्धित प्रमाणपत्रके आधारपर उन बच्चोंकी शिनाख्त आसानीसे की जा सके। इतना ही पर्याप्त समझा गया था और इसे मैंने उनके स्वेच्छया पंजीयन प्रमाण- पत्रोंमें ही शामिल कर दिया था। और इसी कारण एशियाई जो कुछ चाहते थे उसे पूरा करनेमें और उन्हें [मेरे उपर्युक्त सुझावोंको] कानूनमें शामिल कर लेने में कोई कठिनाई नहीं हुई। माननीय सदस्य देखेंगे कि प्रस्तुत विधेयकमें जो नये परिवर्तन किये गये हैं, उनमें तीसरा यही है कि १६ सालसे कम उम्र के नाबालिगोंको पंजीयन प्रमाणपत्र लेनेकी जरूरत नहीं होगी; अलबत्ता उनके माता-पिताके प्रमाणपत्र में दर्ज किये जायेंगे ।

प्रधानमन्त्री द्वारा गवर्नरको भेजे गये ता० ५ सितम्बर, १९०८ के विवरण (मिनट) का अंश : " एशियाइयोंने नौ मुद्दे उठाये थे; इन्हें यह मान कर कि इन नौ मुद्दोंमें उनकी सारी माँगें पूरी-पूरी आ जाती हैं, लिपिबद्ध कर लिया गया था । एक लम्बी बहसके बाद, जो कुछ घंटों तक चलती रही थी, तय हुआ था कि उनकी इन माँगोंको यथासम्भव स्वीकार कर लिया जाये और किसी भी विचारशील आदमीको यह कहनेका अवसर न दिया जाये कि उन्हें पूरा करनेमें जो उदारता चाहिए थी, नहीं बरती गई । स्वीकार की गई माँगें इस प्रकार थीं :

(१)एशियाई' शब्दकी परिभाषाको इस प्रकार बदला जाये जिससे टर्की द्वारा शासित प्रदेशोंके मुस्लिम प्रजाजनों के लिए, जैसा कि १८८५ के कानून ३ में किया गया है, 'एशियाई' शब्दका खास तौरपर उपयोग न किया जाये ।

(२) ११ अक्तूबर, १८८९ से पहले तीन साल तक ट्रान्सवालमें निवास कर चुकनेवाले अपंजीयित एशियाइयोंको वापस आने और अपना पंजीयन कराने दिया जाये, बशर्ते कि उन्होंने नये अधिनियमके लागू होनेके एक सालके अन्दर अपनी अर्जी दे दी हो ।

(३) पुरुष जातिके नाबालिग एशियाइयोंके नाम उनके माता-पिताओंके प्रमाणपत्रों में दर्ज कर लिये जायें और जबतक वे सोलह वर्षेके न हो जायें तबतक उनका पंजीयन आवश्यक न माना जाये । (४) व्यापारी अनुमतिपत्रोंके लिए अर्जी देनेवाले उन प्रार्थियोंसे, जो अंग्रेजी-लिपिमें अपने सधे हुए हस्ताक्षर कर सकते हों, अँगूठा निशानीकी माँग न की जाये।

(५) यदि एशियाश्योंका पंजीयक पंजीयनके लिए अर्जी देनेवाले किसी प्रार्थीको पंजीयित करना अस्वीकार कर दे तो प्रार्थी उसके निर्णयके खिलाफ उसके लिए नियुक्त मजिस्ट्रेटकी अदालत में अपील कर सके ।

(६) १९०७ के अधिनियम २ की वह व्यवस्था, जिसमें एशियाइयोंको अमुक परिस्थितियों में शराब हासिल करने की अनुमति दी गई है, इस आधारपर हटा दी जानी चाहिए कि शराब पीना सम्बन्धित व्यक्तियोंमें से ज्यादातरके धर्मके खिलाफ है ।

(७) १९०७ का अधिनियम २ संविधि पुस्तक (स्टैच्यूट बुक) में तो कायम रहे किन्तु ऐसे सारे एशियाइयोंको, जिनके पास वैधीकरण अधिनियम (वैलीडेटिंग ऐक्ट) के अन्तर्गत मिले पंजीयन १. मूल अंग्रेजी वाक्यका अर्थ अस्पष्ट है ।