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परिशिष्ट
प्रमाणपत्र हैं, एशियाई कानून संशोधन अधिनियम (एशियाटिक ला अमेंडमेंट ऐक्ट ) की व्यवस्थाओंसे खास तौरपर मुक्त माना जाये ।
(८) अबूबकर आमद नामके मृत भारतीयकी प्रिटोरियामें अवस्थित वह सम्पत्ति, जो उसने १८८५ के कानून ३ के पास होनेसे पहले प्राप्त की थी, उसके उत्तराधिकारियोंके नाम चढ़ाई जाये ।

'चर्चाका नौवाँ विषय यह नई माँग थी कि जो एशियाई ट्रान्सवालमें पहले रह चुकनेका दावा तो नहीं करते किन्तु जो शैक्षणिक परीक्षा पास कर सकते हों उन्हें भी प्रवेश करने दिया जाये। यह एक ऐसी माँग थी जिसे मंत्रीगण पहले ही अस्वीकार्य ठहरा चुके थे। सिवा इसके यह बात भी समझ में नहीं आती थी कि इस सम्बन्धमें लगभग सभी प्रान्तोंके गोरे उपनिवेशियोंकी भावनाओंको देखते हुए इस वर्गके एशियाइयोंको प्रवेशाधिकार देनेवाला कोई विधेयक संसदके किसी भी सदनमें किस तरह पास कराया जा सकेगा। एशियाई नेताओंको बता दिया गया था कि इस एक विषयमें उनकी इच्छाओं की पूर्ति नहीं की जा सकती और यह बात उन्होंने साफ-साफ समझ भी ली थी। इसके बाद चर्चासे हम जिस निर्णयपर पहुँचे थे उसके अनुसार नये सिरे से विधेयकका मसविदा तैयार करनेके लिए एक प्रवर समिति नियुक्त की गई, जिसमें विधानसभा के सभी दलोंके लोग थे । इस समिति में सर पर्सी फिटजपैट्रिक, श्री जेकब्ज, चैपलिन, वासवर्ग और उपनिवेश- सचिव थे और उनकी गत माहकी ता० २० की रिपोर्टकी एक प्रति, जिसमें यह नया मसविदा दिया गया है, साथमें भेजी जा रही है। "

महान्यायवादी (अटर्नी जनरल ) की ९ सितम्बर, १९०८ की रिपोर्टका एक अंश :

४. नाबालिग एशियाई (यानी, १६ सालसे कम उम्रका लड़का ) को माता, पिता या अपने अभिभावकके प्रमाणपत्र में शामिल किया जायेगा । सन् १९०७ के अधिनियम २ के अनुसार, यदि बालक ८ सालसे कमका हो तो उसकी माता, उसके पिता या अभिभावकका यह कर्तव्य था कि वह उसका आवश्यक विवरण दे दे और जब यह बालक आठ वर्षका हो जाये तो उसकी ओरसे पंजीयनके लिए अर्जी दे । नये अधिनियम के अन्तर्गत लड़केको पंजीयनकी अर्जी १६ सालका हो जानेपर देनी होगी और यदि वह उस समय उपनिवेशके बाहर हो तथा [ उपनिवेशमें] निवासका अपना अधिकार - अगर वह उसका प्राप्य अधिकारी हो - प्राप्त करना चाहे तो उसे उक्त अर्जी उपनिवेशके बाहर किसी ऐसे स्थानसे देनी होगी जो उपनिवेशके बाहर किन्तु दक्षिण आफ्रिकाके अन्दर हो । "

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९१०