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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

हद तक कि खानेसे लोगोंको फुरसत ही नहीं मिलती। और कितना कहूँ ? यह सब आप चाहे जिस पुस्तकमें देख सकते हैं। यह सब सभ्यताकी सच्ची निशानियाँ हैं । और यदि कोई व्यक्ति इससे भिन्न बात समझाये तो निश्चिय मानिए, वह अनजान है । सभ्यता तो यही मानी जाती है, जिसे मैं बता चुका हूँ । उसमें नीति या धर्मकी बात है ही नहीं। सभ्यताके हिमायती साफ कहते हैं कि उनका काम लोगोंको धर्म सिखाना नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि धर्म तो ढोंग है। दूसरे कुछ लोग धर्मका दम्भ करते हैं, नीतिकी भी बात करते हैं। फिर भी, मैं बीस वर्षके अनुभवके आधार- पर कहता हूँ कि नीतिके नामपर अनीति सिखाई जाती है। यह तो बच्चा भी समझ सकता है कि नीति ऊपर बताई हुई बातोंमें हो ही नहीं सकती। सभ्यताको तो इसीकी चिन्ता है कि शारीरिक सुख कैसे मिले । यही देनेका वह प्रयत्न करती है किन्तु वह सुख नहीं मिल पाता ।

यह सभ्यता तो अधर्म है, और यह यूरोपमें इस हद तक फैल गई है कि वहाँके लोग अर्ध-विक्षिप्तसे दिखाई देते हैं। उनमें सच्ची शक्ति नहीं है; अपनी शक्ति वे नशेके बलपर कायम रखते हैं। एकान्तमें वे बैठ ही नहीं सकते। स्त्रियोंको, जिन्हें घरकी रानियाँ होना चाहिए, गलियोंमें भटकना पड़ता है, या मजदूरीके लिए जाना पड़ता है। इंग्लैंडमें ही चालीस लाख रंक अबलाएँ पेटके लिए सख्त-मजदूरी करती हैं और इस कारण इस समय सक्रेजेट [ मताधिकार ] का आन्दोलन चल रहा है।

यदि हम धैर्यपूर्वक सोचें तो समझ में आ जायेगा कि यह ऐसी सभ्यता है कि इसकी लपेटमें पड़े हुए लोग अपनी ही सुलगाई अग्निमें जल मरेंगे। पैगम्बर मुहम्मदकी शिक्षाके अनुसार इसे शैतानी राज्य कहा जा सकता है । हिन्दू धर्म इसे घोर कलियुग कहता है। मैं आपके सामने इस सभ्यताकी हूबहू तसवीर नहीं खींच सकता । यह बात मेरे बूतेके बाहरकी है। परन्तु यह आप समझ सकते हैं कि इसके कारण अंग्रेजों सड़ाँधने घर कर लिया है। यह सभ्यता नाशकारी और नाशवान है। इससे दूर रहना ही अच्छा है और इसीसे अंग्रेजोंकी पार्लियामेंट और दूसरी पार्लियामेंटें निकम्मी हो गई हैं। उक्त पार्लियामेंट गुलामीको सूचित करती है, यह निश्चित है। यदि आप पढ़ें और सोचें तो आपको भी ऐसा ही लगेगा। इसमें आप अंग्रेजोंका दोष न निकालें । उनपर तो दया की जानी चाहिए। यों वे बा-होश लोग हैं; इसलिए मैं मानता हूँ कि इस जालसे निकल आयेंगे। वे साहसी और परिश्रमी हैं। उनके विचार मूलत: अनीतिपूर्ण नहीं हैं। इसलिए उनके प्रति मेरे मनमें उत्तम विचार ही हैं। उनका दिल खराब नहीं है । सभ्यता उनके लिए असाध्य रोग नहीं है, परन्तु अभी वे उस रोगसे ग्रस्त हैं, यह तो भूलना ही नहीं चाहिए ।

साँचा:Rh '''अध्याय ७ : भारत कैसे गया ?'''

पाठक : आपने सभ्यताके बारेमें तो बहुत-सी बातें बतायीं और मुझे विचार डाल दिया। मैं दुविधामें पड़ गया हूँ कि यूरोपकी प्रजासे क्या लिया जाये और क्या

१. अंग्रेजी पाठमें - पाँच लाख ।


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