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परिशिष्ट १९

गृहमन्त्रीके निजी सचिवका गांधीजीको तार

मार्च २४, १९११

आपका २० का पत्र और २२ का तार मिला । उत्तरमें मुझे आपको यह सूचित करनेका निर्देश मिला है कि आपके द्वारा उल्लिखित मामलेमें जान पड़ता है गलत धारणा बन गई है । प्रवासी विधेयक या उसके किसी संशोधनमें, जिसे सरकार पेश करना चाहती है, रंग अथवा जाति सम्बन्धी कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा। आपने बार-बार कहा है कि भारतीय समाज एशियाई प्रश्नके अन्तिम निर्णयके लिए यह चाहता है: एक, १९०७ के अधिनियम २ का रद किया जाना; दो, नये प्रवासी कानूनके अन्तर्गत सबके लिए [ एक-सी] शिक्षा-परीक्षा किन्तु उसके अमलमें भिन्नता । जनरल स्मट्सने इन मुद्दोंको माना ही नहीं है, वे उसके भी आगे बढ़े हैं। वे नये अधिनियम के अन्तर्गत प्रविष्ट शिक्षित भारतीयोंको ट्रान्सवालमें, जहाँ यह झगड़ा शुरू हुआ है, पंजीयनसे मुक्त रखना चाहते हैं। वे अधिवासियों या वैध निवासियोंकी पत्नियों और उनके नाबालिग बच्चोंके अधिकारोंके सम्बन्ध में भी संशोधन रखेंगे । इससे नेटाल और केपमें उनके अधिकार आजके जैसे अक्षुण्ण रहेंगे । इसलिए आपकी यह धारणा गलत है कि प्रस्तावित विधेयकके अन्तर्गत एशियाश्योंकी स्थिति और भी बिगड़ जायेगी। उनके वर्तमान अधिकार सभी जगह कायम रखें जायेंगे और कोई कानूनी भेदभाव नहीं किया जायेगा। ऑरेंज फ्री स्टेटके बारेमें आप जो कुछ कहते हैं उसपर जनरल स्मटसको कुछ नहीं कहना है और वे स्थितिको वैसी ही बनी रहने देना चाहते हैं जैसी वह प्रान्तके वर्तमान कानूनमें है । जनरल स्मट्स अन्तमें मुझे यह कहनेका निर्देश देते हैं कि आपने अपने इसी ४ तारीखके पत्रके पहले अनुच्छेदमें जो कुछ कहा है, वे आशा करते हैं कि आप उसके अनुसार संघर्षको बन्द करानेका जो यह अवसर आया है उसे हाथसे न जानें देंगे और ऑरेंज फ्री स्टेटके सम्बन्धमें बिलकुल ही नया तर्क उठाकर वर्तमान असन्तोषजनक स्थितिको जारी रखनेकी भूल न करेंगे। उन्हें भय है कि आपके इस रुखसे यूरोपीय समाज 'चिढ़ जायेगा और स्थिति और भी उलझ जायेगी । मूल अंग्रेजी तारकी फोटो- नकल (एस० एन० ५३५०) से ।