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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाठक : अब यह बताइए कि अंग्रेज भारतपर कब्जा किस तरह रखे हुए हूं?

सम्पादक: जैसे हमने उन्हें भारत दे दिया, उसी तरह हम उसपर उनका कब्जा भी रहने दे रहे हैं। उनमें से कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने भारतको तलवारसे लिया है; और तलवारसे ही उसपर कब्जा रखते हैं। ये दोनों ही बातें गलत हैं । भारतपर कब्ज़ा रखनेमें तलवार किसी काम नहीं पड़ सकती । यहाँ उनका कब्ज़ा बनाये रखनेके लिए भी हम ही उत्तरदायी हैं।

नेपोलियनने अंग्रेजोंको व्यापारी जाति कहा है। यह बिलकुल ठीक है। याद रखना चाहिए कि वे किसी भी देशपर कब्जा व्यापारके लिए रखते हैं। उनकी फौज और नौ-सेना सिर्फ व्यापारकी रक्षा करनेके लिए है। जब ट्रान्सवालमें व्यापार नहीं था तब श्री ग्लैड्स्टनको तुरन्त सूझा कि अंग्रेजोंको ट्रान्सवाल नहीं रखना चाहिए। किन्तु जब वहाँ व्यापार दिखा तब श्री चेम्बरलेनने यह खोज निकाला कि ट्रान्सवालपर अंग्रेजोंकी हुकूमत है और उसके साथ युद्ध किया । स्वर्गीय, राष्ट्रपति कूगरसे किसीने पूछा : 'चन्द्रमामें सोना है या नहीं? " उन्होंने जवाब दिया कि “चन्द्रमामें सोनेका होना सम्भव नहीं लगता, क्योंकि यदि होता तो अंग्रेज उसे अपने साम्राज्यमें मिला लेते । ” यह ध्यान में रखनेसे कि उनका परमेश्वर पैसा है, सारी बात स्पष्ट हो जायेगी ।

तो, हमने अंग्रेजोंको केवल अपने स्वार्थीके कारण भारतमें बना रखा है। हमें उनका व्यापार पसन्द आता है। वे दाँव-पेच करके हमें रिझाते हैं और रिझाकर हमसे काम ले लेते हैं। इसमें हमारा उनके दोष निकालना उनकी सत्ताको बनाये रखनेके बराबर है। फिर हमारे आपसके झगड़े उनको और ज्यादा बल देते हैं।

यदि आप ऊपरकी बातको ठीक मानें तो हमने सिद्ध कर दिया कि अंग्रेज व्यापारके लिए आये, व्यापारके लिए रहते हैं और उनके बने रहनेमें हम ही मददगार हैं। उनके हथियार तो बिलकुल व्यर्थ हैं।

इस प्रसंगमें मैं आपको यह याद दिलाता हूँ कि जापानमें भी अंग्रेजी झण्डा ही फहराता है; आप ऐसा ही समझिये । जापानके साथ अंग्रेजोंने जो सन्धि की है, सो व्यापारके लिए। और आप देखेंगे कि वे वहाँ व्यापार जमा लेंगे। अंग्रेज अपने मालके लिए सारी दुनियाको अपना बाजार बनाना चाहते हैं। ऐसा कर नहीं सकेंगे, यह सही है। किन्तु इसपर तो उनका कोई वश नहीं है। हाँ, वे अपने प्रयत्नोंमें कुछ उठा रखनेवाले नहीं हैं।

१. विलियम एवार्ट ग्लैड्स्टन (१८०९-९८) ग्रेट ब्रिटेनके प्रधानमन्त्री, १८६८-७४, १८८०-८५, १८८६ और १८९२-९४ ।

२. जोजेफ़ चेम्बरलेन (१८३६-१९१४); ब्रिटेनके उपनिवेश-मन्त्री, १८९५ ।

३. स्टीफेन्स जोहानीज पॉलस क्रूगर (१८२५-१९०४) बोअर नेता और दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके राष्ट्रपति, देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ७२ ।


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