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हिंदी स्वराज्य
अध्याय ८: भारतकी दशा

पाठक : यह समझमें आ गया कि भारत क्यों अंग्रेजोंके हाथ है। अब मैं भारत- की दशाके बारेमें आपके विचार जानना चाहता हूँ ।

सम्पादक : आज भारत दरिद्रावस्थामें है। यह कहते हुए मेरी आँखोंमें पानी भरा आता है और गला सूख रहा है। मैं पूरी तरहसे आपको समझा सकूंगा या नहीं, इसमें मुझे सन्देह है। मेरा निश्चित मत है कि भारत अंग्रेजोंके नहीं, बल्कि वर्तमान सभ्यताके नीचे कुचला जा रहा है। वह उसकी लपेटमें आ गया है। उससे निकलनेका उपाय अभीतक तो जरूर है, परन्तु दिन-ब-दिन देरी होती जा रही है । मुझे तो धर्म प्यारा है, इसलिए पहला दुःख तो यह है कि भारत धर्मच्युत होता जा रहा है। धर्मका अर्थ यहाँ मैं हिन्दू या मुसलमान या जरथ्रोस्ती धर्म नहीं कहता । परन्तु इन सब धर्मोमें जो धर्म-निहित है वह समाप्त हो रहा है। हम ईश्वरसे विमुख होते जा रहे हैं ।

पाठक : सो कैसे ?

सम्पादक : भारतपर यह आरोप है कि हम आलसी हैं और गोरे परिश्रमी तथा उत्साही हैं। और इसे मानकर हम अपनी स्थिति बदलना चाहते हैं ।

हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई - सभी धर्म यह सिखाते हैं कि बातोंके प्रति मन्द और धार्मिक बातोंके प्रति उत्साही रहना चाहिए सांसारिक लोभकी हद बाँध दें और धार्मिक लोभको मुक्त रखें । उसीमें रखे।

पाठक : यह तो मानो, आप पाखण्डी बननेकी शिक्षा दे रहे हैं । ऐसी बातें करके धूर्त लोग दुनियाको ठगते आये हैं और आज भी ठग रहे हैं ।

१. अंग्रेजी पाठमें : "हरएक समझता है कि आपने जिन हिस्सा नहीं हैं।"

सम्पादक : कृपया धर्मपर झूठा दोष न मढ़ें । पाखण्ड तो सब धर्मोमें है। जहाँ सूर्य है वहाँ अँधेरा भी है। परछाईं हर वस्तुकी होती है। आप देखेंगे, धार्मिक धूर्त सांसारिक घूसे अच्छे हैं। सभ्यताके जिस पाखण्डकी मैं आपसे चर्चा कर चुका हूँ वह धर्ममें मुझे कहीं दिखा ही नहीं।

पाठक : ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? धर्मके नामपर हिन्दू-मुसलमान लड़े, धर्मके बहाने ईसाइयोंमें महायुद्ध हुए, धर्मके नामपर हजारों निरपराध लोग मारे गये, उन्हें जला दिया गया, उनपर घोर संकट ढाये गये । यह तो सभ्यतासे भी खराब माना जायेगा ।

सम्पादक: मैं कहता हूँ कि यह सब सभ्यताके दुःखोंकी अपेक्षा अधिक सह्य है। आपने जो कुछ कहा वह पाखण्ड है, ऐसा सब समझते हैं। इसलिए जो आज उसमें फँसे हुए हैं, आगे-पीछे वे उसमें से निकल भी आयेंगे । जहाँ भोले लोग हैं वहाँ ऐसा चलता तो रहेगा। परन्तु उसका बुरा असर सदैव नहीं बना रहता। किन्तु सभ्यताकी

१. अंग्रेजी पाठमें : "हरएक समझता है कि आपने जिन अत्याचारों की बात कही, वे धर्मका हिस्सा नहीं हैं।"

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