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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होली में जलकर मरनेवालोंको एक तो कोई सीमा नहीं है, और फिर खूबी यह है कि लोग उसे अच्छा मानकर उसमें कूदते हैं। वे न दीनके रहते हैं, न दुनियाके | बातको बिलकुल भूल जाते हैं। सभ्यता चूहेकी भाँति फूंक-फूंक कर काटती है। जब हमको उसके असरका पता चलेगा तब उनकी तुलनामें हमें पुराने अन्धविश्वास मीठे लगेंगे। मैं यह नहीं कहता कि हम उन अन्धविश्वासोंको कायम रखें। नहीं, उनसे तो हम लड़ें ही; परन्तु वह लड़ाई धर्मको भूल जानेसे नहीं लड़ी जायेगी, बल्कि सही तौरपर धर्मका सम्पादन करके लड़ी जा सकेगी।

पाठक : तब तो आप यह भी कहेंगे कि अंग्रेजोंने भारतमें शान्ति कायम करके जो सुख दिया है वह बेकार है ?

सम्पादक : आप भले शान्ति देखते हों, मैं तो शान्ति-सुख नहीं देखता ।

पाठक : तो क्या ठग', पिंडारी, भील आदि जो कष्ट देते थे उसमें आपके हिसाबसे कोई हर्ज नहीं था ?

सम्पादक : आप थोड़ा सोचकर देखें तो मालूम होगा कि वह कष्ट बिलकुल मामूली था । यदि वह गम्भीर होता तो प्रजा कबकी जड़-मूलसे नष्ट हो गई होती । फिर आजकलकी शान्ति तो नाममात्रकी ही है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि हम इस शान्तिसे नामर्द, स्त्रैण और भीरु बन गये हैं। अंग्रेजोंने ठगों और पिंडारियोंका स्वभाव बदल दिया है, हम ऐसा न मान लें । हमपर वैसा कष्ट पड़े तो वह सहन किया जा सकता है; परन्तु यदि कोई दूसरा व्यक्ति हमें उससे बचाये तो यह हमारे लिए एकदम हीनताजनक होगा। मुझे तो निर्बल बननेके बजाय यह ज्यादा पसन्द कि हम भीलोंके तीरोंसे मर जायें । उस स्थितिमें भारतका तेज कुछ अलग ही था। मैकॉलेने भारतीयोंको नपुंसक माना, यह उसके अधम अज्ञानका सूचक है। भारतीय नामर्द कभी रहे ही नहीं। जिस देशमें पहाड़ी लोग और बाघ-बघेरे साथ- साथ रहते हों उसके निवासी यदि सचमुच डरपोक हों तो उनका तो नाश ही हो जाये । आप कभी खेतोंमें गये हैं ? मैं आपसे विश्वासके साथ कहता हूँ कि खेतोंमें आज भी हमारे किसान निर्भय होकर सोते हैं। अंग्रेज और आप वहाँ सोनेमें आनाकानी करेंगे । बल तो निर्भयतामें है। यह आप थोड़ा ही सोचनेसे समझ जायेंगे कि शरीरमें मांसका लोंदा बढ़ जानेसे बल नहीं आ जाता । फिर आप तो, स्वराज्यके इच्छुक हैं। मैं आपको याद दिलाता हूँ कि भील, पिंडारी और ठग हमारे ही देश-भाई हैं। उनको जीतना आपका और मेरा काम है। जब तक आपको अपने ही भाईका उर रहेगा तबतक आप मंजिलपर कदापि नहीं पहुँचेंगे। १. लुटेरोके गिरोह जो राहगीरोंको धोखा देकर गला घोंटकर मार डालते थे और उनका माल लेकर चम्पत हो जाते थे ।


२. सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दीके घुड़सवार लुटेरे ।


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