पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
हिंदी स्वराज्य
अध्याय ९ : भारतकी दशा (जारी) : रेलगाड़ियाँ

पाठक: भारतकी तथाकथित शान्तिपर मैं मुग्ध था, वह मेरा मोह आपने खत्म कर दिया। अब ऐसा नहीं लगता कि आपने मेरे पास कुछ भी छोड़ा है।

सम्पादक : अभी तो मैंने आपको केवल धर्मकी दशाका अन्दाज दिया है। किन्तु भारत रंक क्यों कर है, इस विषयमें जब मैं आपको अपने विचार बताऊँगा, तब शायद आपको मुझसे नफरत ही हो जायेगी। क्योंकि आपने और हमने अबतक जिन चीजोंको लाभकर माना है, मुझे तो वे हानिकर जान पड़ती हैं।

पाठक: जरा सुनाइये तो वे क्या चीजें हैं ?

सम्पादक: भारतको रेलगाड़ियों, वकीलों और डॉक्टरोंने कंगाल बना दिया है। यह परिस्थिति ऐसी है कि यदि हम समयपर नहीं जागे, तो चारों ओरसे घिर जायेंगे ।

पाठक : कौन जाने, हमारा संघ द्वारका पहुँचता है कि नहीं। आपने तो उन सभी बातोंपर हमला शुरू कर दिया जो अच्छी दिखाई पड़ती हैं और अच्छी मानी गई हैं। अब बच ही क्या रहा ?

सम्पादक : आपको धैर्य रखना पड़ेगा। [तथाकथित ] सभ्यता कैसी असभ्यता है, यह बात तो कठिनाईसे ही समझमें आयेगी । हकीम आपको बतायेगा कि तपेदिकके मरीजको मरनेके दिन तक जीनेकी आशा रहती है। इस रोगसे होनेवाली हानि ऊपरसे दिखाई नहीं देती। यहाँतक कि इस बीमारीमें आदमीके चेहरेपर एक झूठी आभा आ जाती है। इसलिए रोगी विश्वासमें भ्रमित होता रहता है और अन्तमें डूब जाता है। इसी प्रकार सभ्यताकी बात भी समझिए। यह अदृश्य रोग है। इससे सावधान रहना चाहिए ।

पाठक : ठीक है। किन्तु आप अपना रेलवे-पुराण सुनाइए ।

सम्पादक: आप यह समझ सकेंगे कि यदि रेलवे न हो, तो भारतपर अंग्रेजोंका जितना काबू है, उतना कदापि न रहे। रेलसे महामारी फैली है। यदि रेल न हो, तो थोड़े ही व्यक्ति एक जगहसे दूसरी जगह जायें और इस प्रकार लगनेवाले रोग सारे देशमें न फैल सकें। हम लोग पहले सहज ही 'सेग्रेगेशन - - सूतक - - पालते थे। रेलके कारण दुष्काल बढ़ गये हैं, क्योंकि इस सुविधाके कारण लोग अपना अनाज बेच डालते हैं। जहाँ मँहगाई होती है, अनाज खिंचकर वहीं पहुँच जाता है। लोग लापरवाह हो जाते हैं और इससे दुर्भिक्षका दुःख बढ़ता है। रेलके कारण दुष्टता बढ़ती है, बुरे आदमी अपनी बुराइयाँ तेजीसे फैला सकते हैं। भारतमें जो पवित्र स्थान थे, वे अपवित्र हो गये हैं। पहले लोग बड़ी कठिनाईसे उन स्थानोंपर जा पाते थे, वे लोग वास्तविक भक्तिसे ईश्वरोपासनाके लिए जाते थे। अब तो धूर्तीकी टोली केवल घूर्तता करनेके लिए जाती है ।

१. एक गुजराती कहावत जिसका आशय है : “मैं नहीं जानता कि इस चर्चामें मैं आपका साथ कबतक दे पाऊँगा ।”

Gandhi Heritage Portal