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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाठक : यह तो आपने एकतरफा बात कही। जिस प्रकार बुरे आदमी वहाँ जा सकते हैं, उसी प्रकार अच्छे भी जा सकते हैं। वे रेलका पूरा लाभ क्यों नहीं उठाते ?

सम्पादक : जो अच्छा है, वह तो बीरबहूटीकी तरह चलता है। उसकी रेलवेसे पटरी नहीं बैठती। जो दूसरोंका भला करना चाहता है, उसके मनमें कोई स्वार्थ नहीं होता। वह उतावली नहीं करता। वह जानता है कि मनुष्यपर किसी अच्छी बातकी छाप डालने में हमेशा बहुत समय लगता है। बुरी बात ही छलाँगे भर सकती है। घर बाँधना कठिन है, गिराना सरल है। इसलिए यह साफ समझ लेना चाहिए कि रेलवे हमेशा दुष्टताका ही विस्तार करेगी। भले ही कोई शास्त्रकार एक क्षणके लिए मेरे मनमें इस बातको लेकर सन्देह उत्पन्न कर सके कि रेलवेसे अकाल फैलते हैं या नहीं, किन्तु उससे दुष्टता बढ़ती है यह बात तो मेरे मनपर अंकित हो गई है और मिट नहीं सकती।

पाठक : किन्तु जो रेलवेका सबसे बड़ा लाभ है उसे देखकर दूसरी हानियाँ भूल जाती हैं। रेलवे है, इसलिए भारतमें आज एक-राष्ट्रीयताकी भावना दिखाई पड़ रही है। इसलिए मैं तो कहता हूँ कि रेलवेका आना अच्छा हुआ ।

सम्पादक: यह आपकी भूल है। आपको अंग्रेजोंने सिखाया है कि आप एक- राष्ट्र नहीं थे और होनेमें अभी सैकड़ों वर्ष लगेंगे। यह बात एकदम निराधार है। जब अंग्रेज भारतमें नहीं थे, तब हम एक-राष्ट्र थे, हमारे विचार एक थे, हमारा रहन-सहन एक था । और इसीलिए तो उन्होंने एक-राज्यकी स्थापना की। भेद तो उसके बाद उन्होंने उत्पन्न किये ।

पाठक: यह बात अधिक समझानी पड़ेगी ।

सम्पादक : मैं जो कहता हूँ, सो बिना विचारे नहीं कहता । एक राष्ट्रका यह अर्थ नहीं है कि हमारे बीच अन्तर नहीं था। किन्तु हमारे अग्रगण्य व्यक्ति पाँव पैदल या बैलगाड़ियोंमें सारे हिन्दुस्तानमें घूमते थे। वे एक-दूसरेकी भाषा सीखते थे और उनमें अन्तर नहीं था। जिन दीर्घद्रष्टा पुरुषोंने सेतुबन्ध रामेश्वरम्, जगन्नाथ और हरिद्वारकी यात्रा निश्चित की, क्या आप जानते हैं, उनके मनमें क्या विचार था ? आप स्वीकार करेंगे कि वे लोग मूर्ख नहीं थे। वे जानते थे कि ईश्वर-भजन तो घर बैठे हो जाता है। उन्होंने हमें सिखाया कि 'मन चंगा तो कठौतीमें गंगा' । किन्तु उन्होंने विचार किया कि प्रकृतिने भारतको एक देश बनाया है तो उसे एक राष्ट्र भी होना चाहिए। इसलिए इन विभिन्न धामोंकी संस्थापना करके उन्होंने लोगोंको एकताकी ऐसी कल्पना दी जैसी दुनिया में दूसरी जगह नहीं है। दो अंग्रेज जितने एक नहीं हैं, हम भारतीय उतने एक थे और हैं। केवल हमारे और आपके मनमें, जो 'सभ्य' हो गये हैं, यह आभास उत्पन्न हो गया है कि भारतमें अलग-अलग कौमें हैं । पहले तो हम रेलवेके कारण [अपनेको] अलग-अलग राष्ट्र मानने लगे और फिर रेलवेने हमें एक-राष्ट्रीयताका विचार वापस दिया ऐसा यदि आप कहें तो मुझे आपत्ति नहीं है। अफीमची कह सकता है कि अफीमसे होनेवाली हानिकी खबर मुझे अफीमसे हुई, इसलिए अफीम अच्छी वस्तु है। इस सबपर आप अच्छी तरहसे विचार कीजिए । आपके मनमें अभी शंकाएँ उत्पन्न होंगी, किन्तु आप उन सबका निर्णय अपने मनसे ही कर सकेंगे ।


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