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हिंदी स्वराज्य

नहीं सकतीं। अंग्रेज ही जज होते, अंग्रेज ही वकील होते, अंग्रेज ही सिपाही होते, तो नहीं सकतीं। अंग्रेज ही जज होते, अंग्रेज ही वकील होते, अंग्रेज ही सिपाही होते, तो अंग्रेज केवल अंग्रेजोंपर ही राज्य कर सकते थे । भारतीय न्यायाधीश और भारतीय वकीलोंके बिना काम नहीं चला। यदि आप यह समझ सकें कि वकील कैसे बने और उन्होंने कैसी गड़बड़ी की, ' तो मेरे मनमें इस धन्धेके प्रति जितना तिरस्कार है, उतना ही आपके मनमें भी पैदा हो जायेगा । अंग्रेजी सत्ताकी एक मुख्य कुंजी उसकी अदालतें हैं और अदालतोंकी कुंजी वकील हैं। यदि वकील वकालत छोड़ दें और यह धन्धा वेश्याके धन्धेके जैसा नीच माना जाये, तो अंग्रेजी राज्य एक दिनमें टूट जाये । वकीलोंने ही भारतीय जनतापर यह लांछन लगवाया है कि हमें लड़ाई-झगड़ेसे प्रेम है और हम अदालत-रूपी पानीकी मछलियाँ हैं।

मैंने वकीलोंके विषयमें जो शब्द कहे हैं, वे ही शब्द न्यायाधीशोंके बारेमें भी लागू होते हैं। वे दोनों मौसेरे भाई हैं और एक-दूसरेको शक्ति पहुँचाते हैं।

अध्याय १२ : भारतकी दशा (जारी) : डॉक्टर

पाठक : वकीलोंकी बात तो समझमें आई। मुझे इसकी प्रतीति हो गई कि उन्होंने जो अच्छा किया, सो संयोग मात्र है। वैसे उनका धन्धा देखें, तो वह हीन ही है। किन्तु आप डॉक्टरोंको भी उनके साथ घसीटते हैं। यह कैसे हो सकता है ?

सम्पादक: मैं जो विचार आपके सामने रख रहा हूँ, वे फिलहाल तो मेरे ही हैं। किन्तु ऐसे विचार मैंने ही व्यक्त किये हैं सो बात नहीं है। पश्चिमके सुधारक स्वयं इसके बारेमें मेरी अपेक्षा अधिक सख्त शब्दोंमें लिख चुके हैं। उन्होंने वकीलों और डॉक्टरोंकी बड़ी धज्जियाँ उड़ाई हैं। उनमें से एक लेखकने एक विष-वृक्ष बनाकर वकील, डॉक्टर आदि निरर्थक धन्धा करनेवालोंको उसकी शाखाएँ कहा है और उसके तनेपर नीतिधर्म-रूपी कुल्हाड़ी उठाई है। अनीतिको इन सारे धन्धोंकी जड़ कहा गया है । इससे आप समझ जायेंगे कि मैं आपके सामने अपनी जेबसे निकाले हुए नये विचार पेश नहीं कर रहा हूँ, बल्कि दूसरोंका और अपना भी अनुभव रख रहा हूँ ।

डॉक्टरोंके विषयमें जैसा अभी आपको मोह है, वैसा मुझे भी था । एक समय ऐसा भी था, जब मैंने स्वयं डॉक्टर होनेका इरादा किया था और निश्चय किया था कि डॉक्टर बनकर समाजकी सेवा करूंगा। अब वह मोह नष्ट हो गया है। हमारे यहाँ वैद्यका धन्धा अच्छे धन्धोंमें क्यों नहीं गिना गया, यह बात अब मेरी समझ में आ गई है और मैं उस विचारका मूल्य समझ सकता हूँ ।

अंग्रेजोंने डॉक्टरी विद्यासे भी हमारे ऊपर शासनका शिकंजा कसा है। डॉक्टरोंके अभिमानका भी पार नहीं है। मुगल बादशाहको भ्रमित करनेवाला अंग्रेज डॉक्टर ही था। उसने बादशाहके घरमें [ किसीकी ] कोई बीमारी मिटाई, इसलिए उसे सिरोपा दिया गया था। अमीरोंके पास पहुँचनेवाले भी डॉक्टर ही हैं ।

१. अंग्रेजी पाठमें : " और किस तरह उनके साथ पक्षपात किया गया । "

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