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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। विक्टर अमैन्युअल [ द्वितीय ] ने इटलीको एक तरहसे देखा, मैजिनीने दूसरी तरहसे । अमैन्युअल, काबूर और गैरिबाल्डीकी दृष्टिसे इटलीका मतलब था -- - अमैन्युअल अथवा इटलीका राजा और उसके मुसाहिब मैजिनीके विचारसे इटलीका अर्थ था -- - इटलीके लोग, उसके किसान । [उसके लेखे ] अमैन्युअल आदि तो इसके [प्रजाके] नौकर थे। मैज़िनीकी इटली अब भी गुलाम है। दो राजाओंके बीच शतरंजकी बाजी थी; इटलीकी प्रजा तो सिर्फ प्यादा थी, और है। इटलीके मजदूर अब भी दुःखी हैं। इटलीके मजदूरोंकी फरियाद नहीं सुनी जाती, इसलिए वे लोग खून करते हैं, विरोध करते हैं, सिर फोड़ते हैं और आज भी वहाँ विद्रोहका डर बना रहता है। आस्ट्रियाके चले जानेसे इटलीका क्या फायदा हुआ ? नाममात्रका लाभ हुआ। जिन सुधारोंके लिए संघर्ष हुआ, वे सुधार नहीं हुए, प्रजाकी स्थिति नहीं सुधरी ।

आपका इरादा भारतकी ऐसी दशा करनेका तो नहीं होगा। मैं मानता हूँ कि आपका विचार भारतके करोड़ों लोगोंको सुखी करना है, यह नहीं कि मैं अथवा आप राजसत्ता ले लें। इस हालत में हमें एक ही बात सोचनी पड़ेगी कि प्रजा कैसे स्वतन्त्र हो ।

आप स्वीकार करेंगे कि कुछ देशी रियासतोंमें प्रजा कुचली जा रही है। वे [ वहाँके शासक ] लोगोंको बड़ी नीचतासे तकलीफ देते हैं। उनका अत्याचार अंग्रेजोंसे भी अधिक है। यदि आप भारतमें ऐसा ही अत्याचार होते देखना चाहते हों, तो हमारी आपकी पटरी बैठ ही नहीं सकती ।

मेरा स्वदेशाभिमान मुझे ऐसा नहीं सिखाता कि हमारे देशी राजाओंके नीचे रैयत जिस तरह कुचली जा रही है, उसे उसी तरह कुचलने दिया जाये। मुझमें शक्ति हुई, तो मैं देशी राजाओंके अत्याचारके विरुद्ध उसी तरह जूलूंगा जिस तरह कि अंग्रेजोंके अत्याचारके विरोधमें।

स्वदेशाभिमान मेरे लेखे देशका हित है। यदि देशका हित अंग्रेजोंके हाथों होता हो, तो मैं आज अंग्रेजोंको प्रणाम करूंगा। यदि कोई अंग्रेज कहे कि भारतको आजाद करना चाहिए, अत्याचारका मुकाबला करना चाहिए और लोगोंकी सेवा करनी चाहिए, तो मैं उस अंग्रेजको भारतीय मानकर उसका स्वागत करूंगा।

और फिर भारत, तभी लड़ सकता है जब उसे इटलीकी तरह ही हथियार मिलें। किन्तु जान पड़ता है कि आपने इस जबर्दस्त बातपर विचार ही नहीं किया । अंग्रेज गोला-बारूदसे लैस हैं, इस बातका डर नहीं लगता । किन्तु यह बात तो ठीक ही है कि यदि उनसे उन्हींके जैसे हथियारोंसे लड़ना हो, तो भारतको सशस्त्र करना ही होगा। यदि यह सम्भव हो, तो इसके लिए कितने वर्ष चाहिए ? इसके सिवा प्रत्येक भारतीयको सशस्त्र बनानेका अर्थ तो भारतको यूरोप जैसा ही बनाना हो जाता है। यदि ऐसा हुआ, तो आज यूरोपकी जो दुर्गति है, वही भारतकी होगी । संक्षेपमें, भारतको यूरोपीय सभ्यता अपनानी होगी। यदि ऐसा ही होना है, तो यह अच्छा होगा कि उस सभ्यतामें निष्णात अंग्रेजोंको हम यहाँ ही बना रहने दें। उनसे थोड़ा-बहुत लड़कर कुछ हक ले लेंगे, कुछ नहीं ले पायेंगे और इसी तरह दिन गुजारेंगे।



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