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हिंदी स्वराज्य

किन्तु वास्तविकता यह है कि भारतकी जनता कभी शस्त्र धारण नहीं करेगी और न करना ही ठीक है ।

पाठक : आप तो बहुत ज्यादा कह गये । सभीको हथियारबन्द होनेकी जरूरत नहीं है। हम पहले तो कुछ हत्याएँ करके आतंक फैलायेंगे। इसके बाद जो थोड़े लोग सशस्त्र होकर तैयार हो जायेंगे, वे खुल्लमखुल्ला लड़ेंगे। यह ठीक है कि इसमें पहले तो २०-२५ लाख भारतीय मर जायेंगे, किन्तु अन्तमें हम देशको अपने हाथमें कर लेंगे । हम गुरिला ( डाकुओंसे मिलती-जुलती ) युद्ध-पद्धति अपनाकर अंग्रेजोंको हरा देंगे ।

सम्पादक : आपका विचार भारतकी पवित्र भूमिको राक्षसी बना देनेका लगता है। हत्याएँ करके भारतको मुक्त करेंगे, ऐसा सोचते हुए आपको झिझक क्यों नहीं होती ? खून तो हमें अपना बहाना चाहिए। हम नामर्द हो गये हैं इसीलिए हम ऐसी बात सोचते हैं। इस प्रकार आप किसे आजाद करेंगे ? भारतकी जनता कदापि ऐसा नहीं चाहती। हम जैसे लोग, जिन्होंने अघम सभ्यतारूपी भांग पी ली है, नशेमें ऐसा विचार करते हैं। जो लोग खून करके राज्य प्राप्त करेंगे, वे प्रजाको सुखी नहीं कर सकते। धींगराने जो खून किया और जो खून भारतमें हुए हैं, उनसे फायदा हुआ - यदि कोई ऐसा मानता हो, तो वह बड़ी भूल करता है। मैं धींगराको देशभक्त मानता हूँ, किन्तु उसकी भक्ति उन्मत्त थी । उसने अपने शरीरकी आहुति गलत रास्तेसे दी। इससे अन्तमें हानि ही है।

पाठक : किन्तु आपको इतना तो मानना पड़ेगा कि अंग्रेज इस हत्यासे भयभीत हो गये हैं और लॉर्ड मॉने जो-कुछ दिया है, वह ऐसे ही डरसे दिया है।

सम्पादक : अंग्रेज जाति डरपोक भी हैं, और बहादुर भी । गोला-बारूदका असर उसपर तुरन्त हो जाता है, यह मैं मानता हूँ। यह सम्भव है कि लॉर्ड मॉर्लेने जो- कुछ दिया, वह डरके मारे दिया हो । किन्तु डरसे मिली हुई वस्तु जबतक डर है, तभीतक टिक सकती है ।

अध्याय १६ : गोला-बारूद

पाठक : डरसे दी हुई चीज जबतक डर है, तभी तक टिक सकती है, यह आपने विचित्र बात कही। जो दे दी, सो दे दी, फिर उसमें क्या फेरफार हो सकता है ?

सम्पादक : ऐसा नहीं है । १८५७ की घोषणा विद्रोहके अन्तमें लोगोंमें शान्ति स्थापित करनेके लिए की गई थी। जब शान्ति हो गई और लोग विश्वासी बन गये, तब उसका अर्थ बदल गया । यदि मैं सजाके डरसे चोरी न करूँ, तो सजाका • डर समाप्त होते ही मेरा मन चोरी करनेका हो जायेगा और मैं चोरी कर डालूँगा ।

१. अंग्रेजी पाठमें सवा दो लाख ।

२. देखिए पाद-टिप्पणी ३, पृष्ठ ४ ।

३. देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ १३-१४ ।

४. मॉर्ले भारत-मन्त्री थे। मॉर्ले-मिंटो सुधार १५ नवम्बर, १९०९ से लागू हुए ।

५. १८५८ की महारानी विक्टोरियाकी घोषणा ।


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