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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह तो बहुत सामान्य अनुभव है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हमने मान लिया है कि लोगोंसे डाँट-डपट कर काम लिया जा सकता है, और इसीलिए हम ऐसा करते आये हैं ।

पाठक : क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आपका यह कहना आपके खिलाफ जाता है ? आपको मानना होगा कि अंग्रेजोंने स्वयं जो-कुछ पाया, सो मार-काट करके ही पाया है। आप कह चुके हैं कि उन्होंने जो-कुछ पाया, सो बेकार है. - यह मुझे याद है। किन्तु इससे मेरी दलीलपर आँच नहीं आती। उन्होंने बेकार चीज प्राप्त करनेका निश्चय किया और उसे पाया। मतलब यह कि उन्होंने अपनी मुराद हासिल की। इसके साधन क्या थे, इसकी क्या चिन्ता ? यदि हमारा उद्देश्य ठीक हो, तो फिर क्या उसे हम चाहे जिस साधनसे - मार-काट करके भी -- प्राप्त न करें ? चोर मेरे घरमें घुस आये, तब क्या मैं साधनका विचार करूँगा ? मेरा धर्म तो उसे, जैसे बने वैसे, निकाल देनेका होगा ।

आप यह तो मानते मालूम होते हैं कि हमें अर्जियाँ भेजते रहनेसे कुछ नहीं मिला और न आगे मिलेगा। तब फिर हम मार-धाड़ करके क्यों न लें ? जितना आवश्यक हो मार-धाड़का उतना भय हम बनाये रखेंगे। बच्चा आगमें पाँव रखे और हम उसे आगसे बचाने के लिए उसपर अंकुश लगायें, तो आप इसमें कोई दोष नहीं मानेंगे । हमें तो जैसे-तैसे कार्यसिद्धि करनी है ।

सम्पादक: आपने ठीक दलील दी है। ऐसी दलीलसे बहुतोंने धोखा खाया है। मैं भी ऐसी दलील किया करता था। किन्तु अब मेरी आँखें खुल गई हैं और मैं अपनी गलती देख पाता हूँ। मैं उसे आपको भी बतानेकी कोशिश करूँगा ।

पहले तो इसपर विचार कर लें कि अंग्रेजोंने जो-कुछ पाया, सो मार-धाड़ करके पाया, इसलिए हम भी वैसा ही करके [ अपना उद्देश्य ] प्राप्त करें। अंग्रेजोंने मार-धाड़ की, और हम भी कर सकते हैं, यह बात तो ठीक है। लेकिन हम भी वैसी ही चीज पा सकते हैं, जैसी उन्हें मिली । आप स्वीकार करेंगे कि वैसी चीज तो हमें बिल्कुल नहीं चाहिए ।

आप यह जो मानते हैं कि साधन और साध्यमें सम्बन्ध नहीं है सो बहुत बड़ी भूल है। इस भूलके कारण जो व्यक्ति धार्मिक कहे गये हैं, उन्होंने घोर कर्म किये हैं। यह तो गुरबेल बोकर बेलाके फूलकी इच्छा करने जैसा हुआ। मेरे लिए तो समुद्र पार करनेका साधन नाव ही है। अगर मैं पानीमें बैलगाड़ी डाल दूँ, तो वह गाड़ी और मैं दोनों ही समुद्रके तलमें पहुँच जायेंगे । 'जैसा देव वैसी पूजा', यह वाक्य बहुत विचारणीय है। इसका गलत अर्थ निकाल कर लोग भूलमें पड़ गये हैं। साधन बीज है और साध्य -- - हासिल करनेकी चीज वृक्ष है। इसलिए जितना सम्बन्ध बीज और वृक्षमें है, उतना साधन और साध्य में है। शैतानको भजकर मैं ईश्वरभजनका फल प्राप्त करूँ, यह सम्भव नहीं हो सकता। इसलिए यह कहना कि हमें भजना तो ईश्वरको ही है, साधन भले ही शैतानी हो एकदम अज्ञानसे भरी हुई बात है। जैसी करनी वैसी भरनी । अंग्रेजोंने मार-धाड़ करके १८३३ में मत देनेका विशेष



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