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अधिकार प्राप्त किया, किन्तु क्या मार-काट करके वे अपना कर्तव्य समझ सके ? उनका अधिकार प्राप्त किया, किन्तु क्या मार-काट करके वे अपना कर्तव्य समझ सके ? उनका उद्देश्य अधिकार प्राप्त करनेका था, सो उन्होंने मार-काट मचाकर हासिल कर लिया । वास्तविक अधिकार तो कर्तव्यके फल हैं, वे उन्होंने प्राप्त नहीं किये । परिणाम यह हुआ है कि सभी अधिकार पानेके लिए प्रयत्न करते हैं, किन्तु कर्तव्य सो गया है । जहाँ सभी अधिकारकी बात करते हैं, वहाँ कौन किसको दे? हमारा कहनेका यह मतलब नहीं कि वे कोई भी कर्तव्य नहीं करते, लेकिन जो अधिकार वे माँगते थे उनसे सम्बन्धित फर्ज उन्होंने अदा नहीं किये। उन्होंने योग्यता प्राप्त नहीं की, इसलिए उनके अधिकार उनकी गरदनपर जुएकी तरह बोझ बनकर लद गये, अर्थात् उन्हें जो-कुछ मिला है, वह उनके साधनोंका ही परिणाम है। उन्हें जो-कुछ चाहिए था, वे उसके अनुरूप साधन काममें लाये ।

यदि मुझे आपकी घड़ी छीन लेनी हो, तो निःसन्देह मुझे आपके साथ मार-पीट करनी होगी। किन्तु यदि मुझे आपकी घड़ी खरीदनी हो, तो मुझे उसके दाम देने होंगे। और यदि इनामकी तरह लेनी हो, तो आपकी चिरौरी करनी पड़ेगी। घड़ी पानेके लिए मैं जिस साधनका उपयोग करूँगा, उसीके मुताबिक वह चोरीका माल, मेरा माल या इनाममें पाई हुई चीज बन जायेगी। तीन साधनोंके तीन अलग-अलग परिणाम होंगे। अब आप कैसे कह सकते हैं कि साधनकी कोई चिन्ता नहीं ?

अब चोरको निकालनेकी मिसाल लें। मैं आपके इस विचारसे सहमत नहीं हूँ कि चोरको निकालनेके लिए चाहे जो साधन काममें लाया जा सकता है ।

अगर मेरे घरमें मेरा बाप चोरी करने आ जाये, तो मैं एक साधन काममें लाऊँगा । अगर जान-पहचानका कोई व्यक्ति चोरी करने आये, तो वही साधन काममें नहीं लाऊँगा। यदि कोई अनजान आदमी घुस आया हो, तो तीसरा साधन काममें लाऊँगा । यदि वह व्यक्ति गोरा हो तो एक साधन, भारतीय हो तो दूसरा -- शायद ऐसा भी आप कहेंगे। यदि कोई कमजोर लड़का चोरी करने आ जाये, तो मैं बिलकुल दूसरा ही साधन इस्तेमाल करूंगा। अगर वह मेरी बराबरीका हो, तो दूसरा; और अगर वह सशस्त्र और ताकतवर आदमी हो तो मैं चुप्पी साधे सोता रहूँगा। इसमें बापसे लेकर ताकतवर आदमी तक अलग-अलग साधन काममें लाये जायेंगे। मुझे लगता है कि बाप होगा, तो भी दम साधकर पड़ा रहूँगा और अगर वह हथियारसे लैस ताकतवर आदमी होगा तो भी चुप्पी साधे पड़ा रहूँगा । बापमें भी ताकत है और सशस्त्र व्यक्तिमें भी ताकत है। दोनों बलोंसे हार मानकर मैं अपनी वस्तु चली जाने दूंगा। बापका बल मुझे ममताके कारण रुलायेगा और हथि- यारका बल मेरे मनमें क्रोध उत्पन्न करेगा। हम लोग कट्टर दुश्मन बन जायेंगे । ऐसी विषम परिस्थिति है। इन उदाहरणोंसे हम साधनोंका निर्णय तो नहीं कर सकेंगे । मुझे तो सभी चोरोंके साथ कैसा बरताव किया जाये, यह बात समझमें आती है । किन्तु आप उस उपायसे भड़क उठेंगे, इसलिए मैं उसे आपके सामने नहीं रखता। आप इस बातको समझ लीजिए। यदि नहीं समझेंगे, तो हर वक्त आपको अलग-अलग साधन काममें लाने पड़ेंगे। लेकिन यह तो आप समझ ही गये होंगे कि चोरको निकाल



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