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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उदाहरणके लिए सरकारने मुझपर लागू होनेवाला कोई कानून पास किया । वह मुझे पसन्द नहीं है । उस समय यदि मैं सरकारपर हमला करके कायदा रद कर- वाता हूँ, तो मैंने शरीर-बलका प्रयोग किया। यदि मैं वह कानून स्वीकार न करूँ और उसके कारण मिलनेवाली सजा भुगत लूँ, तो मैंने आत्मबल अथवा सत्याग्रह बरता । सत्याग्रहमें मैं अपना बलिदान करता हूँ- • अपना ही कुछ त्याग करता हूँ ।

अपना बलिदान करना दूसरेका बलिदान करनेसे अच्छा है। • ऐसा सभी कहेंगे । इसके सिवाय सत्याग्रह के द्वारा लड़ने में, अगर लड़ाई गलत हो तो, केवल लड़नेवालेको ही दुःख भोगना पड़ता है अर्थात् अपनी गलतीकी सजा वह खुद ही भोगता है। ऐसी अनेक घटनाएँ हो चुकी हैं जिनमें लोगोंने गलतीसे संघर्ष किया। कोई भी आदमी निःशंक भावसे यह नहीं कह सकता कि अमुक कार्य खराब ही है । किन्तु जिस समय उसे वह खराब लगे उस समय तो उसके लिए खराब ही है । यदि ऐसा हो तो उसे वह काम नहीं करना चाहिए। और उसके लिए दुःख भोगना चाहिए। यह सत्याग्रहकी कुंजी है ।

पाठक : अर्थात् आप कानूनका विरोध करते हैं। यह राजद्रोहकी वृत्ति कही जायेगी। हमारी गणना हमेशा कानून माननेवाले समाजके रूपमें होती है । आप तो अतिवादीसे भी आगे बढ़ते हुए जान पड़ते हैं । [ अतिवादी ] कहता है कि जो कानून बन गया उसे तो मानना ही चाहिए, लेकिन यदि कानून खराब हो तो कानून बनानेवालेको मार भगाना चाहिए ।

सम्पादक : मैं आगे जाता हूँ या पीछे हटता हूँ इसकी मुझे या आपको चिन्ता नहीं होनी चाहिए। हम तो जो अच्छा है उसे खोजना और उसके मुताबिक बरतना चाहते हैं ।

हमारा समाज कानून माननेवाला है, इसका सही अर्थ तो यह है कि हमारा समाज सत्याग्रही है। कानून पसन्द न आये, तो हम कानून बनानेवालेका सिर नहीं फोड़ते, किन्तु उसे रद करानेके लिए उपवास करते हैं ।

हम अच्छे या बुरे किसी भी कानूनको कबूल कर लेते हैं यह अर्थ तो आजकलका है । पहले ऐसा कुछ नहीं था । लोग जी में आये उस कानूनको तोड़ते थे और उसकी सजा भोग लेते थे ।

कानून नापसन्द होनेपर भी उसके मुताबिक चलना, ऐसी सीख मर्दानगीके खिलाफ है, धर्मके खिलाफ है और गुलामीकी हद है ।

सरकार कह सकती है कि हम उसके सामने नंगे होकर नाचें । तो क्या हम नाचेंगे ? अगर मैं सत्याग्रही हूँ, तो मैं सरकारसे कहूँगा : आप यह कानून अपने घरमें रखिए। मैं न तो आपके सामने नंगा होऊँगा और न नाचूँगा । " किन्तु हम तो ऐसे असत्याग्रही बन चुके हैं कि सरकारके हुक्मपर नंगा होकर नाचनेसे भी नीच काम करने लगे हैं ।

जिस मनुष्यमें इन्सानियत है, जिसे खुदाका ही डर है, वह दूसरेसे नहीं डरता । दूसरेका बनाया हुआ कानून उसे नहीं बाँधता । बेचारी सरकार भी नहीं कहती कि तुम्हें ऐसा करना ही पड़ेगा। वह भी कहती है कि “यदि तुम ऐसा नहीं करोगे,


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