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हिंदी स्वराज्य

तो तुम्हें सजा होगी । हम अपनी पतित अवस्थाके कारण मान लेते हैं कि हमें ऐसा ही करना चाहिए; यह हमारा फर्ज है, यह हमारा धर्म है।

यदि लोग एक बार सीख लें कि जो कानून हमें अन्यायपूर्ण मालूम होता हो उसे मानना नपुंसकता है, तो फिर हमें किसीका भी जुल्म सहन नहीं हो सकता । यह स्वराज्यकी कुंजी है।

बहुसंख्यक जिसे कहें, अल्पसंख्यक उसे मान ही लें, यह तो अधर्म है, अन्धश्रद्धा है। ऐसे हजारों उदाहरण मिल जायेंगे जिनमें अधिकांश लोगोंका कहा हुआ गलत निकला और जो थोड़ोंने कहा, वही सही निकला। सभी सुधार बहुमतके विरुद्ध खड़े होकर थोड़े-से लोगोंने दाखिल कराये हैं। ठगोंकी वस्तीमें ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि ठग-विद्या सीखनी ही चाहिए, तो क्या वहाँ रहनेवाला कोई साधु पुरुष भी ठग बन जायेगा ? नहीं, नहीं। जबतक यह भ्रम दूर नहीं होता कि अन्यायपूर्ण कानूनको भी मान लेना चाहिए, तबतक हमारी गुलामी दूर नहीं होगी और ऐसे भ्रमको केवल सत्याग्रही व्यक्ति ही दूर कर सकता है।

शरीर-बलका उपयोग करना, गोला-बारूद काममें लाना उपर्युक्त कानूनमें [ सत्याग्रहके कानूनमें ] बाधा पहुँचानेवाले हैं। शरीरबलके उपयोगका अर्थ तो यह हुआ कि जो कुछ हमें पसन्द है, सो हम दूसरे व्यक्तिसे जबरदस्ती करवाना चाहते हैं । यदि यह बात ठीक हो, तो विपक्षी भी अपनी रुचिका काम करानेके लिए हमपर गोलाबारूदका उपयोग करनेका अधिकारी है। इस तरह तो हम कभी अपने गन्तव्य तक नहीं पहुँच सकेंगे। कोल्हूके बैलकी तरह आँखोंपर पट्टी बँधी रहनेके कारण हम यह भले ही मान लें कि हम आगे बढ़ रहे हैं, किन्तु वास्तविकता तो यही है कि हम उस बैलकी तरह उस वर्तुलकी प्रदक्षिणा ही करते हैं। जो ऐसा मानते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जो कानून उसे पसन्द न आये उसपर चलनेके लिए बँधा हुआ नहीं है, उनके लिए सत्याग्रह ही एकमात्र सच्चा साधन है। अन्यथा नतीजा बड़ा विकट होगा ।

पाठक: आप जो कुछ कहते हैं, उससे मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि सत्याग्रह कमजोर आदमियों के अधिक कामका है, किन्तु जब वे सबल हो जायें तब तो उन्हें शस्त्र ही चलाने चाहिए ।

सम्पादक : आपने यह तो बड़े अज्ञानकी बात कही । सत्याग्रह तो सर्वोपरि है। वह शस्त्र बलकी अपेक्षा अधिक काम करता है, तो फिर भला उसे निर्बलका हथियार कैसे गिन सकते हैं ? सत्याग्रहके लिए जिस हिम्मत और मर्दानगीकी जरूरत पड़ती है, वह शस्त्र बलवालेके पास हो ही नहीं सकती। क्या आप ऐसा मानते हैं कि कोई पस्त- हिम्मत और कमजोर आदमी उस कानूनको भंग कर सकेगा जिसे वह नापसन्द करता है ? उग्रपन्थी शस्त्र-वलवाले हैं। वे कानून माननेकी बात क्यों कर रहे हैं? मैं उनको दोष नहीं देता। वे दूसरी कोई बात कर ही नहीं सकते। वे अंग्रेजोंको मारकर जब खुद राज्य करेंगे, तब आपसे और हमसे कानून मनवाना चाहेंगे। यह बात उनके सिद्धान्तके योग्य ही है। किन्तु सत्याग्रही तो कहेगा कि उसे जो कानून पसन्द नहीं है, वह उसे कबूल नहीं करेगा, भले ही उसे तोपके मुँहपर क्यों न बांध दिया जाये।

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