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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप क्या मानते हैं? तोप चलाकर सैकड़ोंको मारनेके लिए हिम्मत चाहिए अथवा तोपके मुँहपर हँसते-हँसते बँध जानेमें हिम्मतकी जरूरत है? जो हथेलीपर जान लेकर चलता है, वह शूरवीर है या वह जो दूसरोंकी जानको मुट्ठीमें रखता है ?

नामर्द एक क्षण भी सत्याग्रही नहीं रह सकता, इसे निश्चित मानिए ।

हाँ, यह ठीक है कि शरीरसे क्षीण व्यक्ति भी सत्याग्रही बन सकता है। एक व्यक्ति भी सत्याग्रही बन सकता है और लाखों भी । मर्द भी सत्याग्रही हो सकता है और औरत भी। उसे सेना तैयार करनेकी जरूरत नहीं पड़ती, उसे पहलवानी सीखने की जरूरत नहीं पड़ती, उसने जहाँ अपने मनपर काबू किया कि वह वनराज सिंहकी तरह गर्जना कर सकता है और जो दुश्मन बन बैठे हैं उनके हृदय उसके सिंह-नादसे फट जाते हैं ।

सत्याग्रह एक दुधारी तलवार है। उसे जिस तरह काम में लाना चाहो, उस तरह काममें ला सकते हो । चलानेवाला और जिसके ऊपर वह चलती है, दोनों सुखी होते हैं। वह रक्तपात नहीं करती, फिर भी परिणाम उससे कहीं बड़ा प्रस्तुत कर सकती है। उसे जंग नहीं लग सकता और उसे कोई ले नहीं जा सकता । सत्याग्रही [ दूसरे सत्याग्रही ] की होड़ करे तो इसमें उसे थकान नहीं आती। सत्याग्रहीकी तलवारको म्यानकी जरूरत नहीं होती। उसे कोई छीन नहीं सकता। इतने पर भी यदि आप सत्याग्रहको निर्बलोंका हथियार मानें, तो इसे केवल अन्धेर ही कहा जायेगा ।

पाठक: आपने कहा कि यह भारतका अपना विशिष्ट शस्त्र है । तो क्या भारतमें [कभी ] शस्त्र बलका उपयोग नहीं किया गया ?

सम्पादक : आप भारतका अर्थ मुट्ठी-भर राजाओंसे करते हैं। मेरे मनमें तो भारतका अर्थ वे करोड़ों किसान हैं जिनके सहारे राजा और हम सब जीते हैं।

राजा तो हथियार काममें लायेंगे ही। उनकी तो वह रीति ही ठहरी । उन्हें तो हुक्म चलाना है। किन्तु हुक्म माननेवालेको शस्त्र बलकी आवश्यकता नहीं है । संसारका ज्यादातर भाग हुक्म माननेवालोंका है। उन्हें या तो शस्त्र-बल सीखाना चाहिए या सत्याग्रहका बल ।' जहाँ वे शस्त्र बल सीखते हैं, वहाँ राजा और प्रजा दोनों पाग हो जाते हैं। जहाँ हुक्म माननेवालोंने सत्याग्रह सीखा है वहाँ राजाका अत्याचार उसकी तीन हाथकी तलवारसे आगे नहीं जा सका और हुक्म माननेवालोंने कभी अन्यायपूर्ण हुक्मकी परवाह नहीं की। किसान कभी किसीकी तलवारके वशमें नहीं हुए और न होंगे। उन्हें तलवार चलाना नहीं आता, किन्तु वे किसीकी तलवारसे डरते भी नहीं हैं। वे मौतको हमेशा अपना तकिया बनाकर सोनेवाले महान लोग हैं। उन्होंने मौतका डर छोड़ दिया है, इसलिए सबका डर छोड़ दिया है । यह ठीक है कि मैं तसवीर कुछ बढ़ा-चढ़ाकर खींच रहा हूँ। किन्तु हमारे लिए, जो शस्त्रके बलके आगे दंग रह गये हैं, यह चित्रण अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है।

बात यह है कि किसानोंने, प्रजामण्डलोंने, अपने और राज्यके कारोबारमें सत्याग्रहका प्रयोग किया है। जब राजा अत्याचार करता है तब प्रजा रूठ जाती है। यह सत्याग्रह ही है।

१. मूल पाठमें यहाँ ‘हथियार बल' है । अंग्रेजी पाठमें यह भूल दुरुस्त कर दी गई है ।

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