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हिंदी स्वराज्य

मुझे याद है कि एक रियासतमें रैयतको कोई हुक्म पसन्द नहीं आया । इसलिए रैयतने गाँव खाली करना शुरू कर दिया। राजा घबराया और उसने रैयतसे क्षमा माँगी और हुक्म वापस ले लिया। ऐसे बहुत-से दृष्टान्त मिल सकते हैं, किन्तु ज्यादातर वे भारतकी ही उपज निकलेंगे । जहाँ ऐसी प्रजा है, वहाँ स्वराज्य है। इसके बिना स्वराज्य कुराज्य है।

पाठक : तब तो आप कहेंगे कि शरीरको बलवान बनानेकी जरूरत ही नहीं है ।

सम्पादक: यह आपने कैसे समझ लिया ? शरीरको कसे बिना सत्याग्रही होना कठिन है। जिन शरीरोंको पोस-पोसकर कमजोर बना दिया जाता है, उनमें रहनेवाला मन भी कमजोर होता है और जहाँ मनोबल न हो वहाँ आत्मबल कैसे हो सकता है ? हमें बाल-विवाह इत्यादि कुरीतियों और भोग-विलास प्रधान रहन-सहनकी बुराईको हटाकर शरीरको पुष्ट करना चाहिए। यदि मैं किसी मरियल आदमीको तोपके सामने खड़े हो जानेको कहूँ, तो लोग मेरी हँसी उड़ायेंगे ।

पाठक: आप जो कहते हैं उससे ऐसा लगता है कि सत्याग्रही होना कोई साधारण बात नहीं है। और यदि ऐसा है, तो आपको यह भी समझाना चाहिए कि सत्याग्रही कैसे बना जा सकता है ।

सम्पादक: सत्याग्रही बनना आसान है। किन्तु वह जितना सरल है, उतना कठिन भी है। चौदह वर्षका बच्चा सत्याग्रही बना है, यह मैंने स्वयं देखा है। रोगी व्यक्ति भी सत्याग्रही बने हैं, यह भी मैंने देखा है। मैंने यह भी देखा है कि जो शरीरसे शक्तिशाली और दूसरी तरह सुखी थे, वे सत्याग्रही नहीं बन सके ।

मैंने अनुभवसे जाना है कि जो व्यक्ति देश-हितके लिए सत्याग्रही होना चाहते हैं उन्हें ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिए, गरीबी अपनानी चाहिए। सत्यका पालन तो करना ही चाहिए और उसमें निर्भीकता [भी ] होनी ही चाहिए ।

ब्रह्मचर्य एक महान व्रत है और उसके बिना संकल्प दृढ़ नहीं होता । अब्रह्मचर्यंसे व्यक्ति अवीर्यवान, स्त्रैण और हीन हो जाता है। जिसका मन विषय-वासनामें भटकता हो, उससे किसी कठिन प्रयत्नकी आशा नहीं की जा सकती। अनगिनत उदाहरणोंसे यह बात सिद्ध की जा सकती है। तब प्रश्न उठता है कि गृहस्थ क्या करे। किन्तु इस प्रश्नको उपस्थित करनेकी कोई जरूरत नहीं है। गृहस्थ जो संग करता है वह विषय-भोग नहीं है, ऐसा कोई नहीं कह सकता । केवल सन्तानोत्पत्ति करनेके लिए स्वस्त्री-संगकी आज्ञा दी गई है। सत्याग्रहीको सन्तानोत्पत्तिकी इच्छा नहीं करनी चाहिए । इस प्रकार वह संसारी होनेपर भी ब्रह्मचर्यका पालन कर सकता है । यह बात अधिक विस्तारसे कहने योग्य नहीं है। स्त्रीका क्या कहना है ? यह सब कैसे हो सकेगा ? ऐसे सवाल मनमें उत्पन्न होते हैं। फिर भी जिसे बड़े कामोंमें हाथ बँटाना है, उसे ऐसे प्रश्नोंका निराकरण करना ही होगा ।

जिस प्रकार ब्रह्मचर्य आवश्यक है, उसी प्रकार गरीबी अपनाना भी जरूरी है। पैसेका लोभ और सत्याग्रहका पालन साथ-साथ नहीं चल सकते। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि जिसके पास पैसा है वह उसे फेंक दे। फिर भी पैसेके प्रति अनासक्त


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