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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहनेकी जरूरत है। सत्याग्रहका पालन करते हुए पैसा चला जाये, तो चिन्ता नहीं करनी चाहिए ।

जो सत्यका पालन नहीं करता, वह सत्यके बलको कैसे प्रकट कर सकेगा ?

इसलिए सत्यकी तो पूरी-पूरी जरूरत रहेगी। चाहे जितना नुकसान क्यों न हो, सत्य छोड़ा नहीं जा सकता । सत्यके पास छिपाने योग्य कुछ नहीं है, इसलिए सत्याग्रहीको गुप्त सेनाकी आवश्यकता हो ही नहीं सकती। इस सिलसिले में जान बचानेके लिए झूठ बोलना चाहिए या नहीं, ऐसा प्रश्न मनमें नहीं उठना चाहिए। ऐसे निरर्थक सवाल तो वहीं उठाता है जो झूठका बचाव करना चाहता हो । जिसे सत्यका ही रास्ता लेना है उसके सामने ऐसा धर्म-संकट उपस्थित नहीं होता। यदि ऐसी विषम परिस्थितिमें आ पड़े, तो भी सत्यवादी मनुष्य उसमें से निकल आता है।

अभयके बिना सत्याग्रहकी गाड़ी एक कदम भी आगे नहीं चल सकती। अभय पूरी तरहसे और सब बातोंमें रहना चाहिए। धन-सम्पत्ति, झूठी इज्जत, सगे-सम्बन्धी, राज-दरबार, शारीरिक आघात और मरण, सभीके बारेमें अभय हो तभी सत्याग्रहका पालन सम्भव है ।

ऐसा मानकर कि यह सब करना मुश्किल है, इसे छोड़ नहीं देना चाहिए । जो सिरपर आ पड़े, उसे सह लेनेकी शक्ति प्रकृतिने मनुष्यको दे रखी है। देश-सेवा न करनी हो, तब भी ऐसे गुणोंका पालन करना उचित है ।

इसके सिवा यह भी समझा जा सकता है कि जिसे शस्त्र बल प्राप्त करना है। उसे भी इन बातोंकी जरूरत पड़ेगी। रणवीर होना कुछ ऐसी बात नहीं है कि किसीको भी इच्छा हुई और रणवीर हो गया । योद्धाको ब्रह्मचर्यका पालन करना होगा, भिखारी बनना होगा। जिनमें अभय न हो, वे युद्धमें क्या लड़ेंगे ? किसीको शायद ऐसा लगे कि योद्धाको सत्यका पालन करना उतना जरूरी नहीं है। किन्तु जहाँ अभय है, वहाँ सत्य तो अपने-आप रहेगा । जब कोई व्यक्ति सत्यको छोड़ता है, तब वह किसी प्रकारके भयके कारण ही उसे छोड़ता है ।

इसलिए इन चार गुणोंकी बात सुनकर डरनेकी जरूरत नहीं है। इसके सिवा तलवारबाजको कुछ निरर्थक प्रयत्न भी करने पड़ते हैं, जिनकी सत्याग्रहीको जरूरत नहीं पड़ती। तलवारबाजको जो अन्य प्रयत्न करने पड़ते हैं उसका कारण भय है । यदि वह पूरी तरह निर्भय हो जाये, तो उसी क्षण वह हाथकी तलवार छोड़ देगा। फिर उसे उसके सहारेकी जरूरत ही नहीं रहती। जिसके मनमें किसीके प्रति शत्रु- भाव नहीं है, उसे तलवारकी जरूरत नहीं है। सिंहके सामने पहुँचनवाले एक व्यक्तिके हाथकी लाठी अपने-आप उठ गई और वह समझ गया कि उसने अभयका पाठ केवल कंठस्थ ही किया था। उस दिनसे उसने लाठी छोड़ दी और निर्भय हो गया ।


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