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हिंदी स्वराज्य

नहीं हैं । हमारी पुरानी पाठशालाएँ काफी हैं। वहाँ नीतिकी शिक्षाको प्रथम दिया जाता है। वह सच्ची प्राथमिक शिक्षा है। उसपर जो इमारत खड़ी की जायेगी वही टिकी रह सकेगी ।

पाठक : तब क्या मैं यह ठीक समझा हूँ कि आप स्वराज्यके लिए अंग्रेजी शिक्षाका कोई उपयोग नहीं मानते ?

सम्पादक : मेरा जवाब 'हाँ' और 'नहीं' - दोनों हैं। करोड़ों लोगोंको अंग्रेजी शिक्षण देना उन्हें गुलामीमें डालने जैसा है। मैकॉलेने जिस शिक्षणकी नींव डाली, वह सचमुच गुलामीकी नींव थी, उसने इसी इरादेसे वह योजना बनाई, यह मैं नहीं कहना चाहता। किन्तु उसके कार्यका परिणाम यही हुआ है। हम स्वराज्यकी बात भी पराई भाषामें करते हैं, यह कैसी बड़ी दरिद्रता है ।

[ फिर ], यह भी जानने लायक है कि जिस पद्धतिको अंग्रेजोंने उतार फेंका है, वही हमारा शृंगार बनी हुई है। उन्हींके विद्वान यह कहते हैं कि यह ठीक नहीं, वह ठीक नहीं। [वहाँ ] शिक्षाकी पद्धतियाँ बदलती रहती हैं। जिसे उन्होंने भुला दिया है, उसे हम मूर्खतावश चिपटाये रहते हैं। वे अपनी-अपनी भाषाकी उन्नति करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। वेल्स इंग्लैंडका एक छोटा-सा परगना है। उसकी भाषा धूलके समान नगण्य है। अब उसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है ।

वेल्सके बच्चे 'वेल्श' में ही बोलें, ऐसी कोशिश की जा रही है। इंग्लैंडके खजानची लॉयड जॉर्ज इसमें बहुत बड़ा हाथ बँटा रहे हैं। तब हमारी दशा क्या है ? हम एक- दूसरेको जो पत्र लिखते हैं, सो गलत-सलत अंग्रेजीमें। गलत-सलत अंग्रेजीसे साधारण एम० ए० पास व्यक्ति भी मुक्त नहीं है। हमारे अच्छे-से-अच्छे विचार प्रकट करनेका साधन है अंग्रेजी । हमारी कांग्रेसका कारोबार भी अंग्रेजीमें चलता है। हमारे अच्छे अखबार अंग्रेजीमें हैं। यदि लम्बी अवधि तक ऐसा ही चलता रहा, तो आनेवाली पीढ़ी हमारा तिरस्कार करेगी और हमें उसका शाप लगेगा ऐसी मेरी मान्यता है ।

आपको समझना चाहिए कि अंग्रेजी शिक्षण स्वीकार करके हमने जनताको गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षणसे दम्भ, द्वेष, अत्याचार आदि बढ़े हैं। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगोंने जनताको ठगने और परेशान करनेमें कोई कसर नहीं रखी। यदि हम [ अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोग ] अब उसके लिए कुछ करते भी हैं, तो उसका हमपर जो ऋण है उसीका एक अंश अदा करते हैं ।

क्या यह कम अत्याचारकी बात है कि मुझे यदि अपने देशमें न्याय प्राप्त करना हो, तो मुझे अंग्रेजी भाषाका प्रयोग करना पड़े? बैरिस्टर हो जानेपर मैं अपनी भाषामें बोल नहीं सकता। दूसरा आदमी मेरी मातृभाषाका अनुवाद करके मुझे समझाये, क्या यह छोटा-मोटा दम्भ है ? यह गुलामीका चिह्न नहीं, तो और क्या है ? इसके लिए मैं किसे दोष दूँ ? अंग्रेजोंको अथवा अपनेको ? भारतको गुलाम बनानेवाले तो हम अंग्रेजी जाननेवाले लोग ही हैं। जनताकी हाय अंग्रेजोंको नहीं, हमको लगेगी।

किन्तु मैंने आपसे कहा कि मेरा जवाब 'हाँ' और 'नहीं' दोनों में है। 'हाँ' कैसे, यह मैंने आपको समझाया ।


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