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हिंदी स्वराज्य

बटकर उजाला करेंगे। उससे आँखें बचेंगी, पैसा बचेगा, हम स्वदेशी बने रहेंगे और स्वराज्यकी धूनी प्रज्वलित करेंगे ।

ये सारे काम सभी लोग एक-साथ ही करेंगे या एक-साथ ही कुछ लोग यन्त्रसे बनी हुई सारी चीजें छोड़ देंगे, यह सम्भव नहीं है। किन्तु यदि यह विचार ठीक हो, तो हम हमेशा शोध करते रहेंगे और थोड़ी-थोड़ी चीजें छोड़ते जायेंगे। यदि हम ऐसा करें, तो दूसरे लोग भी ऐसा करेंगे। पहले इस विचारको दृढ़ करना जरूरी है। उसके बाद उसके अनुसार काम होगा। पहले एक ही व्यक्ति करेगा, फिर दस, फिर सौ । इस प्रकार नारियलकी कहानीकी तरह यह संख्या बढ़ती जायेगी। बड़े लोग जो करते हैं, वही छोटे भी करते हैं और करेंगे। यदि समझो, तो बात बहुत छोटी और सरल है। आपको और मुझे दूसरोंके करनेकी राह नहीं देखनी है। हमें तो जैसे ही समझमें आ जाये, वैसे ही शुरू कर देना चाहिए। जो नहीं करेगा, उसका नुकसान होगा। जो समझकर भी नहीं करेंगे, वे तो निरे दम्भी कहलायेंगे ।

पाठक : ट्रामगाड़ी और बिजलीकी बत्तीका क्या होगा ?

सम्पादक : यह सवाल आपने बड़ी देरसे किया। इस सवालमें अब कोई जान नहीं बची। यदि रेलने हमारा नाश किया है, तो क्या ट्राम नहीं करती ? यन्त्र तो एक ऐसा बिल है, जिसमें एक नहीं, सैकड़ों साँप हैं। एकके बाद दूसरा लगा ही रहता है। जहाँ यन्त्र होंगे, वहाँ बड़े शहर होंगे। जहाँ बड़े शहर होंगे वहाँ ट्रामगाड़ी और रेलगाड़ी होगी और वहीं बिजलीकी बत्तीकी जरूरत होगी। आप जानते होंगे कि विलायतमें भी गाँवों में बिजली या ट्राम नहीं हैं। प्रामाणिक वैद्य और डॉक्टर आपको बतायेंगे कि जहाँ रेलगाड़ी, ट्रामगाड़ी आदि साधन बढ़े हैं, वहाँ लोगोंकी तन्दुरुस्ती बिगड़ जाती है। मुझे याद है कि एक शहरमें जब पैसेकी तंगी हो गई थी, तब ट्रामों, वकीलों और डॉक्टरोंकी आमदनी घट गई थी तथा लोग तन्दुरुस्त हो गये थे ।

मुझे तो यन्त्रका एक भी गुण याद नहीं आता; जब कि उसके दुर्गुणोंपर तो पूरी किताब लिख सकता हूँ ।

पाठक : यह सारा लिखा हुआ यन्त्रकी मददसे छपेगा, उसकी मददसे बँटेगा । इसे यन्त्रका गुण कहें या अवगुण ?

सम्पादक: यह जहरसे जहरका नाश होनेका उदाहरण है। इसमें यन्त्रका कोई गुण नहीं है। यन्त्र मरते-मरते यही कहता है कि मुझसे बचो, होशियार रहो, मुझसे आपको कोई फायदा नहीं होगा। यदि ऐसा कहा जाये कि यन्त्रने कम-से-कम इतना ठीक किया, तो यह बात उन्हींपर लागू होती है जो यन्त्रके जालमें फँसे हैं ।

किन्तु मूल बात न भूलियेगा । यन्त्र एक खराब वस्तु है, इसे मनमें दृढ़ कर लेना चाहिए। इसके बाद हम धीरे-धीरे उसका नाश करेंगे। प्रकृतिने ऐसा कोई सरल रास्ता नहीं बनाया कि हम जिस चीजकी इच्छा करें, वह तुरन्त ही मिल जाये। यन्त्रके ऊपर यदि मीठी नजरके बदले हमारी जहरीली नजर पड़ेगी, तो वह आखिरकार चला जायेगा ।


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