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३३. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]

सितम्बर २४, १९०८

जेल-निदेशक
प्रिटोरिया
महोदय,

मेरे इसी २१ तारीखके पत्रके उत्तरमें आपका २३ तारीखका पत्र, संख्या १०७७/०८/ ८३५, मिला । उसकी प्राप्ति सादर स्वीकार करता हूँ । शिकायत के सम्बन्ध में आपने जो जाँच की है उसके लिए धन्यवाद स्वीकार करें ।

अब मैं शिकायत करनेवाले व्यक्तिका हलफिया बयान' पत्रके साथ भेज रहा हूँ । जैसा कि आप देखेंगे, वह अपने बयानपर कायम है। उसके लिए गवाह पेश करना निस्सन्देह अत्यन्त कठिन है; किन्तु वह जबसे रिहा किया गया है तबसे निमोनिया से पीड़ित है। इससे प्रकट होता है कि उसको यह बीमारी अवश्य ही जेलमें हुई होगी। मेरा और कई ब्रिटिश भारतीयोंका भी, जो अभी हाल ही कैद भुगतकर आये हैं, यह अनुभव है कि गवर्नरसे शिकायत करना आसान बात नहीं है, क्योंकि एक तो कैदी बहुत भयभीत रहते हैं, और दूसरे, उनको अंग्रेजी या तो आती नहीं, या काफी नहीं आती। शिकायत करनेवाले व्यक्तिका कहना है कि यदि कोई सरकारी या सार्वजनिक जाँच की जाये तो वह उसमें पेश होने और गवाही देनेके लिए बिल्कुल तैयार है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अ० मु० काछलिया

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन,३-१०-१९०८

१. जेल-निदेशक (डायरेक्टर ऑफ प्रिजन्स) के नाम लिखा यह पत्र इंडियन ओपिनियन के ३-१०-१९०८ के अंक में " दुःखजनक आरोप : जाँचकी आवश्यकता " शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था ।

२. सैयद अलीका हलफनामा, जो यहाँ नहीं दिया जा रहा है; देखिए " पत्र : जेल-निदेशकको ", पृष्ठ ५७-५९ ।