पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६९
जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

लगाया गया । भोजन दूसरी जगहों-जैसा ही था । तकलीफ उन्हें सिर्फ इस बात से हुई कि खाना खाते समय टोपी उतरवा ली जाती थी । वे लिखते हैं कि मैंने स्वदेश के लिए कष्ट उठाकर मात्र अपना कर्तव्य ही निभाया है; यदि फिर कष्ट उठाना पड़ेगा, तो उसके लिए भी तैयार हूँ ।

समझौता ?

समझौते की बात भी श्री हॉस्केनने चलाई थी । उनके साथ श्री स्मट्सकी बातचीत हुई । इसके बाद उन्होंने काछलिया, श्री इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, श्री क्विन, श्री किन्सन, श्री नायडू और श्री गांधीको [ विचारार्थ ] बुलाया। उन्होंने श्री कार्टराइट तथा श्री डेविड पोलकको भी बुलाया । अन्तमें इन सबने श्री हाँस्केनके नाम एक पत्र लिखकर सार्वजनिक सभामें की गई मूल माँगोंको फिर दुहराया। श्री हॉस्केनने यह पत्र श्री स्मट्सको भेज दिया । आज श्री स्मट्सका जवाब आया है । उसमें वे लिखते हैं कि माँगें तो पहले-जैसी ही हैं और इसलिए स्वीकृत नहीं की जा सकतीं । इसमें निराश होनेकी कोई बात नहीं है । जनरल स्मट्सको ठोंक-बजाकर यह देख लेनेका अधिकार है कि हम नये कानूनको मानते हैं या नहीं । समझौता तभी होगा जब हम इस परीक्षामें उतीर्ण होंगे और भगवा पहनकर फकीर बनने के लिए तैयार हो जायेंगे ।

विलायतके समाचारपत्र

विलायत के समाचारपत्र हमें सलाह दिया करते हैं कि अब हमें चुप बैठ जाना चाहिए, आपत्ति नहीं करनी चाहिए और कानूनको स्वीकार कर लेना चाहिए । यह सीख तो बड़ी समझदारीको है, किन्तु मान्य करने योग्य नहीं है । इसको मान्य करनेकी आवश्यकता भी नहीं है । इस तरहकी बातें पहले भी कही जा चुकी हैं । हमारा कर्तव्य एक ही है : हमारी माँग उचित है, इसलिए जबतक वह स्वीकार नहीं की जाती तबतक हमें जूझते रहना है, नये कानूनका लाभ नहीं उठाना है, और जेलोंको भर देना है ।

वली मुहम्मद

श्री वली मुहम्मद प्रिटोरियाकी जेलमें पाँच दिन गुजारकर घूम-धामसे बाहर आ गये हैं । उन्होंने बताया है कि जेलमें पूपू [ मकईका दलिया ] दिया गया, किन्तु उसे चर्बी मिला हुआ होनेके भय से किसीने नहीं खाया । सारे कैदियोंको एक कतारमें खड़ा कर दिया गया। श्री इस्माइल जुमा उसमें शामिल न हुए, इसलिए उन्हें ठोकरें मारी गई। जब गवर्नर के सामने यह शिकायत करनेका वक्त आया तब मुख्य वार्डरने शिकायत नहीं करने दी । अस्पतालमें जमीन धोने, कचरेको बाल्टियाँ उठाने और कपड़ा धोनेका काम कराया जाता था । ऐसे कष्ट होनेपर भी प्रत्येक भारतीयको जेल जानेके लिए तत्पर रहना है । प्रिटोरियाके भारतीय कैदियोंने देशके लिए जेल जाकर दुःख उठाये, इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-९-१९०८

१. देखिए " पत्र : डब्ल्यू० हॉस्केनको", पृष्ठ ५९-६१ ।