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३४. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]

सितम्बर २५, १९०८

जेल-निदेशक
प्रिटोरिया
महोदय,

ट्रान्सवालकी जेलोंमें भारतीय कैदियोंके लिए जो भोजन-तालिका लागू है, उससे सम्बन्धित प्रश्नके बारेमें आपका इसी २४ तारीखका पत्र मिला ।

यह बात मुझे प्रथम बार मालूम हुई कि सारे ट्रान्सवालमें बजाय एक भोजन तालिका होनेके, जैसा कि मेरे संघका अनुमान था, अनेक भोजन-तालिकाएँ लागू हैं, जो विभिन्न जेलों में एक-दूसरी से भिन्न हैं । मेरे संघको राय है कि भेदभावके इस सिद्धान्तसे उन लोगोंपर बड़े कष्ट आते हैं जिनके विरुद्ध भेदभाव किया जाता है और यदि आप मेरे संघको यह बतायेंगे तो प्रसन्नता होगी कि क्या सारे ट्रान्सवालमें भारतीय कैदियोंके लिए एक नियत भोजन-तालिका निश्चित करनेका सरकारका इरादा है । और यह प्रश्न खुराककी स्वल्पताके प्रश्नसे, जिसका उदाहरण जोहानिसबर्ग में मिलता है, और जिसकी ओर मेरा संघ बार-बार ध्यान आकर्षित कर चुका है, बिलकुल अलग है ।

इस कथन के विरुद्ध कि घोका दिया जाना एक कृपाका कार्य है और खुराक-सम्बन्धी नियमका विषय नहीं, मैं फिर आपत्ति प्रकट करता हूँ, क्योंकि में इस तथ्यको जानता हूँ कि गत जनवरी में जोहानिसबर्गकी जेलमें छपी हुई भोजन तालिकामें घी सम्मिलित था। भारतीय कैदियोंके सम्बन्धमें, जहाँ नियमोंमें चर्बी देनेकी व्यवस्था है वहाँ चर्बी खाने में भारतीयोंकी धार्मिक आपत्तिको देखते हुए, क्या अधिकारियोंका इरादा चर्बीके बजाय अन्ततः घी देने का है, यह सूचित करें तो मेरे संघको प्रसन्नता होगी ।

आपके जिस पत्रका उत्तर दे रहा हूँ उससे इन सन्देहों की पुष्टि होती है कि सरकार भारतीयोंको एक ऐसा भोजन, जिसके वे जीवनमें बिल्कुल अभ्यस्त नहीं रहे, स्वीकार करनेके लिए बाध्य करके उन्हें भूखों मारकर उनसे आत्मसमर्पण कराना चाहती है । मेरे संघको यह देखकर दुःख होता है ।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अ० मु० काछलिया

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-१०-१९०८